त्रिवेंद्र, तीरथ और मदन की तिगड़ी तो भाजपा का मिशन 2022 फतेह





नवीन चौहान

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की जोड़ी को चुनावी रथ पर बैठाकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक चुनावी क्षेत्रों को दौरा करेंगे तो ही मिशन 2022 में सत्ता हासिल कर सकेंगे। मदन कौशिक 60 प्लस के लक्ष्य के करीब पहुंचकर भाजपा हाईकमान को अपनी काबलियत दर्शा पायेंगे। तीनों कददावर नेता ही विपक्षी पार्टियों के सवालों के करारे जबाब देने में कामयाब होंगे। भाजपा को 2022 में उत्तराखंड की सत्ता मिलेगी तो मदन कौशिक पीएम मोदी और अमित शाह के चहेतों की सूची में शामिल होकर राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बनेंगे। फिलहाल मदन कौशिक की सबसे बड़ा राजनैतिक कौशल त्रिवेंद्र और तीरथ को अपने रथ पर सवार करना है। जिसके लिए मदन को मशक्कत करनी होगी। भाजपा की अंद्धरूनी गुटबाजी को दरकिनार कर मिशन सत्ता 2022 पर लक्ष्य निर्धारित करना होगा।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। साल 2022 में विधानसभा चुनाव संपन्न कराने है। दिसंबर 2021 तक आचार संहिता लागू होने की संभावना है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सक्रिय हो चुकी है। कांग्रेस चुनावी मोड में आने के साथ ही हरीश रावत, प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश की तिगड़ी में गुटबाजी बढ़ गई है। तीनों नेताओं के समर्थक कांग्रेस की जीत मानते हुए अपने नेता को मुखिया बनने के हसीन सपने देखने में लगे है। वही आम आदमी पार्टी की बात करें तो कर्नल अजय कोठियाल के आप में शामिल होने के बाद ही आप का मनोबल बढ़ा हुआ है। कर्नल अजय कोठियाल क्षेत्रों का दौरा करने के साथ ही जनता की सहानुभूति बटोरने में जुटे है।
लेकिन हम बात कर रहे है सत्ताशीन पार्टी भाजपा की। जिस पार्टी में हाल के दिनों में बड़ा उलटफेर हुआ। भाजपा के नाराज विधायकों के गुस्से को शांत करने के लिए चार साल से पारदर्शी सरकार चला रहे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। वही भाजपा संगठन में भी बंशीधर भगत को हटाकर केबिनेट मंत्री मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी गई। नेतृत्व परिवर्तन के बाद से ही भाजपा में अंद्धरूनी खींचतान चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चेहरे को गायब कर दिया गया। भाजपा के पोस्टर बैनर से उनके नाम को दूर कर दिया गया। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच एक अलग से दूरी बन गई। हालांकि संघ की पृष्टभूमि से जुड़े तीरथ और त्रिवेंद्र ने अपनी दूरियों को कभी सार्वजनिक नही किया। दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नही की। लेकिन तीरथ सिंह रावत की सरकार के तीन महीनों के फैसले ने तमाम तल्खियों को हवा जरूर दी। मीडिया को खबरों के लिए मसाला भी मिला।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ा दी। जनता के बीच दौरे शुरू कर दिए। जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दी। रक्तदान शिविरों का आयोजन शुरू कराया। जरूरतमंदों की सेवा कार्य में जुट गए। वही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की बात करें तो वह सत्ता की व्यस्तताओं में उलझ गए। कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करना और विकास कार्यो को गति प्रदान करने में पूरी ताकत लगा दी। प्रशासनिक अधिकारियों के फेरबदल और चुनाव के गुणा भाग में कार्य करने लगे।
लेकिन इसी बीच एकाएक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा और संघ के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात के बाद उत्तराखंड की सियायत गरम हो गई। अगले ही दिन पूर्व मुख्यमंत्री ​त्रिवेंद्र सिंह रावत की गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल जी से मुलाकात हुई। जाहिर सी बात है कि इस मुलाकात में उत्तराखंड के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा हुई होगी। त्रिवेंद्र सिंह के चार साल के बेदाग कार्यकाल के बाद उनका मनोबल बढ़ा हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा हाईकमान त्रिवेंद्र सिंह रावत का कद बढ़ाकर उत्तराखंड चुनाव में भाजपा को सत्ता दिलाने की अहम जिम्मेदारी देंगे। जिससे तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र के समर्थकों के बीच दूरियां कम होगी और मदन कौशिक को दोनों को एक साथ चुनाव प्रचार करने में आसानी होगी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की बात करें तो वह चुनावी प्रबंधन में महारथ हासिल रखते है। लेकिन हरिद्वारर की विधानसभा क्षेत्र से बाहर निकलकर पूरे प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों के लिए एक अलग रणनीति बनानी होगी। मदन कौशिक को अपने आचरण में बदलाव लाना होगा। मीडिया से समन्वय स्थापित करना होगा। अपनी खामियों को दूर करने और आलोचनाओं को बर्दाश्त करने की सहनशक्ति जगानी होगी। भाजपा के चुनावी रथ को प्रदेश में दौड़ाना होगा। रथ में त्रिवेंद्र और तीरथ को एक साथ बैठाना होगा। तीनों की तिगड़ी ही प्रदेश में भाजपा को सत्ता दिला सकती है। चुनाव में त्रिवेंद्र के काम गिनाने होंगे और तीरथ की सादगी बतानी होगी। उसी के बाद मदन के सिर पर जीत का सेहरा सजेगा।



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