नवीन चौहान
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड की सत्ता हासिल करने के लिए बड़ा सियासी दांव चला है। बेरोजगारों के मर्म को समझते हुए बेरोजगारी भत्ता पांच हजार देने का ऐलान कर दिया। उत्तराखंड में सरकार बनने पर एक लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर दी। उत्तराखंड के बेरोजगारों की सरकारी और निजी कंपनियों में 80 फीसदी नौकरी देने का वायदा कर दिया। रोजगार और पलायन के लिए अलग से मंत्रालय गठित करने का सिगूफा छोड़ दिया।
अब इतनी अच्छी घोषणा होने के बाद जनता को मनन चिंतन करने का पूरा वक्त मिला है। आगामी विधानसभा चुनाव फरवरी 2022 में होने है। प्रदेश की जनता के सामने कई विकल्प खुले है। सत्ताधारी पार्टी भाजपा, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस, प्रदेश में तेजी से अपनी धाक जमा रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के अलावा क्षेत्रीय दल यूकेडी और बसपा शामिल है।
प्रदेश मे फिलहाल युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार है। साल 2017 में प्रचंड बहुमत की सरकार के मुखिया के तौर पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को नेतृत्व मिला। सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत जीरो टॉलरेंस की मुहिम को लेकर आगे बढ़े तो हिट विकेट हो गए। जनता ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल को सराहा लेकिन पार्टी के ही विधायकों को ईमानदारी रास नही आई। सरकार के चार साल पूरे होने के जश्न को ही खटाई में मिला दिया। नेतृत्व परिवर्तन हुआ तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। उनका कार्यकाल कुछ खास कमाल नही दिखा पाए और हाईकमाल का विश्वास खो चुके तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा ले लिया गया।
साढ़े चार साल में तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को राजयोग मिला। युवा मुख्यमंत्री ने कुर्सी पर काबिज होने के बाद से लगातार बेहतरीन शॉट लगाए। 22 हजार युवाओं की भर्ती निकाली। विकास कार्यो की झड़ी लगा दी। घोषणाओं का अंबार लगा दिया। चुनावी दौरे शुरू किए। जनता की नब्ज को टटोलना शुरू किया। भाजपा हाईकमान के नेतृत्व परिवर्तन के निर्णय को सही ठहराने का पूरा प्रयास कर रहे है।
लेकिन सबसे अहम सवाल अरविंद केजरीवाल के तमाम चुनावी वायदों और मुफ्त बिजली के फार्मूले का तोड़ निकालने के लिए पुष्कर सिंह धामी के पसीना छूटना तय है। उनको जनता का विश्वास जीतने के लिए कुछ नया तरीका निकालना होगा।