नवीन चौहान
जनता की गाढ़ी कमाई को नौकरशाह, प्रशासनिक अधिकारी और शिक्षा के ठेकेदार किस कदर ठिकाने पर तुले है। इसकी बानगी हरिद्वार में देखी जा सकती है। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ने तीन कमरों को ही डिग्री कॉलेज की मान्यता प्रदान की है। इस कालेज में छात्रों को एडमिशन तक दिए गए है। ये पूरा खेल सरकार से मिलने वाली छात्रवृत्ति की धनराशि को ठिकाने लगाने के लिए किया गया है। कालेज को मान्यता देने से पूर्व नियमों की पूरी तरह अनदेखी की गई है। ऐसे में इस गोरखधंधे की जांच कराई जाए तो पूरा का पूरा सिस्टम ही सवालों के घेरे में आ जायेगा। सवाल उठता है कि आखिरकार धोखाधड़ी का ये खेल किसके इशारे पर हो रहा है।
उत्तराखंड राज्य करीब 50 हजार करोड़ के कर्ज में डूबा है। उत्तराखंड सरकार के मंत्री इस कर्ज से व्याज तक को चुकाने में असमर्थ है। सरकार के वित्त मंत्री प्रकाश पंत कर्ज को लेकर पूरी तरह संवेदनशील है। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीरो टालरेंस की मुहिम शुरू की हुई है। वह प्रदेश से भ्रष्टाचार को दूर करने की बात करते है। अब बात करते है शिक्षा के मंदिरों में होने वाले भ्रष्टाचारों की। इस समय प्रदेश में छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर जांच चल रही है। निजी शिक्षण संस्थानों ने किराये के कमरों में डिग्री कॉलेज खोलकर कई दशकों तक सरकार को चूना लगाने का कार्य किया। निजी डिग्री कालेज और इस्टीटयूट ने एससीएसटी के नाम पर मिलने वाली छात्रवृत्ति को हड़पने की दुकान खोल ली। इन शिक्षण संस्थानों ने समाज कल्याण विभागों की जेब गरम करके खूब धन बटोरा। प्रदेश तो कर्ज में डूब गया और निजी शिक्षण संस्थान के प्रबंधक करोड़ों के मालिक बन गए। जब जागरूक लोगों ने इस प्रकरण की शिकायतें की तो सरकार ने एसआईटी गठित कर जांच शुरू कर दी। जांच के पहले ही चरण में निजी शिक्षण संस्थानों की रूहे कांपने लगी। वह जांच से बचने के लिए नेताओं के दरवाजे पर चक्कर लगाने लगे। एसआईटी इस प्रकरण की जांच कर रही है और गोरखधंधे की जड़ों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। अब बात करते है श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के नये कारनामे की। इस विश्वविद्यालय ने हरिद्वार में तीन कमरों को ही डिग्री कालेज की मान्यता दे दी। इस कालेज में पिछले दिनों नकल तक पकड़ी गई। जब श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ दीपक भट्ट से जानकारी की गई तो उन्होंने इस प्रकरण में जांच कराने की बात कही। उन्होंने कहा कि ये प्रकरण मेरे संज्ञान में है। लेकिन मान्यता पूर्व में दी गई है। ऐसे में जिम्मेदार पदों पर काबिज सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने की एक बानगी भर है। यदि सरकार की मंशा वास्तव में उत्तराखंड को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की है तो मान्यता देने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।