सत्ता का हो गया हस्तांतरण, मांगलिक कार्यो का श्रीगणेश




नवीन चौहान, हरिद्वार।

हरिद्वार। चार माह से चली आ रही भगवान शिव की सृष्टि से सत्ता का हस्तांतरण होकर भगवान विष्णु के हाथों चला गया है। इसी के साथ संन्यासियों का चातुर्मास व्रत भी सम्पन्न हो गया। देवोत्थान एकादशी के साथ चार माह से बंद पड़े मांगलिक कार्यों का भी श्रीगणेश हो गया। तीर्थनगरी में देवोत्थान एकादशी सोमवार को श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस दौरान सांय काल लोगों ने घरों में देवों को जागृत किया और भोग लगाकर सुखमय जीवन की कामना की। इसी के साथ कई स्थानों पर तुलसी-शालिग्राम विवाह का भी आयोजन किया गया।

देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु के क्षीरसागर से जागृत होने के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान शालिग्राम व मां तुलसी को विवाह कराने का भी विधान है। सोमवार को कई स्थानों पर भगवान शालिग्राम व तुलसी विवाह का आयोजन किया गया। सांय काल लोगों ने देवोत्थान एकादशी मनाई। गेरु और चावल के लेप से ऐपन बनाकर देव पूजन किया गया। इस अवसर पर भगवान को सिघाड़ा, शकरकंद, चना साग, बेर, मूली, गन्ना आदि नैवेद्य अर्पित किए गए। लोगों ने पूरीे दिन उपवास रखा तथा पूजा के प्श्चात व्रत का परायण किया।

देवोत्थान एकादशी के संबंध में पं. देवन्द्र शुक्ल शास्त्री ने बताया कि जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था, जिसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और पतिव्रता थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। अपने अजेय होने पर जलंधर को अभिमान हो गया और वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे। वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।

भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।



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