गुरूकुल प्रकरण:अंक सुधार परीक्षा के पहले पीएचडी का कारनामा




नवीन चौहान
गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में अनूठे कारनामों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। यहां परिवारबाद की बेल लंबी चढ़ रही है। अंक सुधार परीक्षा के लिए प्रस्ताव पास करने से पूर्व गुरूकुल के ही एक महिला प्रोफेसर के बेटे को पीएचडी के कोर्स वर्क में फेल होने के बाबजूद पास करने का कारनामा गुरूकुल कर चुका है। हालांकि आधिकारिक तौर पर गुरूकुल के तमाम विद्धान प्रोफेसर आदर्शो की बात करते है। लेकिन जब बात सच बालते ही आती है तो सांप सूंध जाता है।
गुरूकुल कांगड़ी स्वामी श्रद्धानंद की तपस्थली है। स्वामी श्रद्धानंद ने भारतीयों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने के उददेश्य से गुरूकुल की स्थापना की। ताकि इंसान श्रेष्ठ बनकर भारत का नाम विश्व पटल पर गौरवांवित करें। स्वामी श्रद्धानंद के उददेश्यों के अनुरूप ही गुरूकुल के छात्रों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। शिक्षा, खेलकूद और तमाम क्षेत्रों में आगे बढ़े और गुरूकुल को ख्याति दिलाई। यही कारण है कि गुरूकुल कांगड़ी का नाम वर्तमान में विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन विगत कुछ दशकों में इस संस्था में परिवारबाद की दीमक लगी हुई है। परिवारबाद की यह दीमक इस संस्था की प्रतिष्ठा को लगातार क्षति पहुंचा रही है। इस संस्था के कर्णधार ही अपने व अपने साथियों की संतान का हित करने के लिए योग्यवान छात्रों का मार्ग बाधित करते है। गुरूकुल में कार्यरत पदाधिकारीगण अपने हितों की पूर्ति के नियम और मानक तय करते रहे है। ऐसा ही अनूठा कार्य विगत दिनों संपन्न हुई सुधार परीक्षा में देखने को मिला। एक प्रोफेसर के बच्चे को लाभ पहुंचाने के लिए गलत परंपरा की नींब रख दी। शिक्षा विदों ने परीक्षा समिति की बैठक बुलाकर अंकु सुधार परीक्षा के प्रस्ताव की अस्वस्थ परंपरा की मंजूरी करा ली। जिसके बाद परीक्षा संपन्न कराई। यहां तक तो गुरूकुल के विद्धानों की योजना के मुताबिक हुआ। लेकिन उसके बाद जब यह प्रकरण मीडिया की सुर्खिया बना तो गुरूकुल का तापमान भी गरम हुआ। गुरूकुल में अंक सुधार परीक्षा को लेकर विचार मंथन का दौर शुरू हो गया। कुछ विद्धानों को अपनी गलती का एहसास हुआ तो सुधार की संभावना तलाशी जाने लगी। जबकि कुछ प्रोफेसरों को लगा कि कुछ दिन बाद मामला शांत हो जायेगा। पूर्व की भांति इस बार भी मंसूबे पूरे हो जायेंगे। इस प्रकरण पर गुरूकुल में चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई पदाधिकारी इस प्रकरण पर बोलने को तैयार नही है। आर्दशों की दुहाई देने वाले गुरूकुल के विद्धानों का मौन भी बहुत कुछ बोल रहा है। ऐसे में अब ये प्रकरण इनके गले की फांस बनकर अटक गया है।



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