लॉक डाउन में ठेकेदारों ने डकारी शराब और आबकारी विभाग सोया रहा




नवीन चौहान
कोरोना आपदा की घड़ी में जहां पूरा विश्व संक्रमण के खौफ में सहमा हुआ था। भारत में संकट के बादल मंडराये हुए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ​के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ दिखाई दे रही थी। देशवासियों की जिंदगी को सुरक्षित बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को एकाएक लॉक डाउन कर दिया। जिंदगी जहां की तहां थम गई। लेकिन अगर नही थमी तो शराब ठेकेदारों की धींगा मस्ती। जिन्होंने बंद ठेके की शराब ही डकार ली। हद तो तब हो गई जब इस शराब की कालाबाजारी की गई और मनमाफिक दामों पर बेचा गया। अब जब इस पूरे खेल से परदा उठा चुका है। आबकारी विभाग की रिपोर्ट सामने आने के बाद ठेकेदारों पर कार्रवाई की तलवार लटकी हुई तो फिर देरी किस बात की हो रही है। जीरो टालरेंस की सरकार तत्काल कार्रवाई में वक्त क्यो ले रही है।
अगर लॉक डाउन अवधि में शराब के ठेके की हकीकत को समझने की जरूरत है। लॉक डाउन के वक्त ठेके के शटर ​गिरा दिए गए थे। शराब ठेके के अंदर बंद रही। लेकिन लॉक डाउन की अवधि बढ़ी तो बाजार में शराब की डिमांड आने लगी। इसी बीच ठेकेदारों ने पीछे के रास्ते से शराब निकालकर मार्केट में मन​माफिक दामों पर बेच डाली। ठेकेदारों ने खूब कमाई की। आबकारी और पुलिस को भनक तक नही लगी। आखिरकार शराब किस रास्ते पर होकर गुजरी। जब सड़कों से जनता गायब थी। वाहन बंद थे। तो ठेके से निकाली गई शराब की खेप कहां और किन मार्गो से होकर गुजरी। सवाल कई है लेकिन जबाव पुलिस, आबकारी और ठेकेदारों के पास है। ये वो समाजसेवी शराब ठेकेदार है जो जनता की मजबूरी का फायदा उठाने और ब्लैक में शराब बेचने के बाद गरीबों को भोजन कराने के नाम पर भंडारे में व्यस्त हो गए। हरिद्वार के 77 में 44 ठेके ऐसे पाए गए जहां एक पव्वा तक नही मिला। दुकान का स्टॉक शून्य पाया गया। ऐसे में आबकारी कमिश्नर अब किस बात का इंतजार कर रहे है। जब आबकारी विभाग की रिपोर्ट आ चुकी है। तो ठेकेदारों पर कार्रवाई में देरी किस बात की हो रही है।



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