नवीन चौहान
नवरात्र में देवी मां को प्रसन्न करने लिए पूजा अर्चना की जाती है, नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है। हरिद्वार में मां मंशा देवी के मंदिर का अपना अलग धार्मिक और पौराणिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यदि मां मंशा देवी से सच्चे मन से कोई मनोकामना की जाए तो वह जरूरी पूरी होती है।
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति मुनि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है।
मां मंशा देवी का प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से होने की बात कही गई है। ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था। यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था, परंतु यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।
मान्यता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से मां के समक्ष अपनी फरियाद लेकर आता है तो वह जरूर पूरी होती है। यहां वृक्ष पर लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए चुनरी और कलावा बांध कर जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर बांधी गई चुनरी और कलावा को खोलकर जाते हैं। कुछ श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर यहां भंडारे का भी आयोजन करते हैं। यही कारण है कि श्रद्धालु इस सिद्धपीठ पर बड़ी संख्या में आकर मां के दर्शन करते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं।