नवीन चौहान,
हरिद्वार। देवभूमि उत्तराखंड में आने वाले चारो धाम के दर्शन करने के लिये आने वाले श्रद्धालुओं से सरकार को फूटी कौड़ी नहीं मिलती है। सरकार के पास उत्तराखंड आने वाले तीर्थयात्रियों का वास्तविक आंकड़े तक उपलब्ध नहीं होते है। बाहरी राज्यों से आने वाले तीर्थयात्री उत्तराखंड आते है और होटल और टै्रवल कारोबारियों की जेब गरम करके अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर लेते है। उत्तराखंड सरकार 18 सालों में पर्यटन नियमावली तक लागू नहीं कर पाई है। यहीं कारण है कि उत्तराखंड सरकार की आर्थिक स्थिति कंगालों जैसी बनी हुई है और कारोबारी अरबपति बन गये है। उत्तराखंड के वाशिंदों के बड़े ही संघर्ष के बाद 9 नवंबर साल 2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना की हुई थी। नवोदित राज्य की स्थापना के लिये केंद्र सरकार ने आर्थिक सहायता की। लेकिन ये आर्थिक सहायता का सिलसिला 18 सालों से अनवरत जारी है। राज्य की कमान संभालने वाले किसी मुखिया के पास कोई ठोस विजन नहीं रहा। किसी मुखिया ने भी राज्य में आय के स्रोत्र उत्पन्न करने के इरादे से कोई कार्य नहीं किया। प्रदेश के मुखिया और मंत्री सत्ता सुख भोगने में ही व्यस्त रहे। उत्तराखंड प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये तीन प्रमुख स्रोत्र है। खनन, आबकारी और पर्यटन। खनन और आबकारी विभाग किस हालत में है ये किसी से छिपा नहीं है। खनन और आबकारी के कारोबारी अरबपति बने हुये है। इन दोनों ही विभागों में झोल हीं झोल है। सरकार के मंत्रियों की मिलीभगत कहें या सरकार की नीति दोनों ही कारोबारियों के हित में है। अब बात करते है पर्यटन विभाग की। हर साल छह माह के लिये विश्व प्रसिद्ध चारधाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के दर्शनों के लिये हजारों तीर्थयात्री उत्तराखंड आते है। यात्री निजी होटलों में रात्रि विश्राम करते है और प्राइवेट वाहन लेकर चारधाम यात्रा पर रवाना हो जाते है। इन यात्रियों के किसी प्रकार का कोई कर नहीं लिया जाता है। होटल वाले मनमाॅफक किराया वसूलते है और टै्रवल एजेंसिया शेयर मार्केट के भाव में वाहनों को किराये पर देती है। जिसने जिनता ज्यादा पैंसा फेंका उसको होटल और वाहन मिले। इस पूरे खेल में उत्तराखंड सरकार का कोई रोल नहीं है। सरकार की ओर से कभी भी पर्यटकों के हितों को ध्यान में रखते हुये कोई पॉलिसी नहीं बनाई गई। होटल और टै्रवल एजेंसियों पर शिकंजा नहीं कसा गया। ये ही हाल बसों से चारधाम यात्रा पर जाने वालों के साथ रहा। एक बस का भाड़ा एक लाख के करीब पहुंच गया। लेकिन सरकार को एक पाई, कौड़ी का सहारा नहीं मिला। तो क्या सरकार नंबर दो की आमदनी को बढ़ावा दे रही हैं। अब सरकार की बात करें तो निजी एजेंसियों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। सरकार ने 18 सालों में पर्यटन क्षेत्र से आमदनी बढ़ाने की कोई पॉलिसी नहीं बनाई। इस स्थिति में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि राज्य में आर्थिक संकट बढेगा या कम होगा। सरकार जब तक दूरदर्शिता से ठोस कदम नहीं उठायेंगी तब तक सरकार केंद्र सरकार के कर्ज से ही उत्तराखंड फलेगा फूलेगा।