किसानों के दर्द ने मुझे बना दिया लेखक- डॉ आरएस सेंगर




हिंदी में लिखते हुए लगता है कि मैं किसानों को तकनीकी ज्ञान दे सका, यह 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और इस सदी में भारत की नई न्यू नई शिक्षा नीति से पड़ेगी, ऐसा हमारा मानना है इसमें राष्ट्रभाषा को विशेष स्थान दिया गया है यदि राष्ट्रभाषा और मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा दी जाएगी तो निश्चित रूप से.

डॉ आरएस सेंगर
छात्रों का सर्वांगीण विकास होगा ही जिससे हिंदी भाषा का विकास हो सकेगा। शिक्षा हमें केवल शिक्षित ही नहीं करती अपितु राष्ट्र का निर्माण भी करती है। यह ऐसे चरित्र का निर्माण करती है जो जीवन मूल्यों पर टिका हो देश को समर्पित हो और मानवता एवं वैश्विक सोच से परिपूर्ण हो। राष्ट्रभाषा हिंदी ही नहीं वैश्विक नागरिक तैयार करने की प्रक्रिया को सामने रखकर ही इस बार शिक्षा नीति को नया स्वरूप दिया गया है। मेरा मानना है कि शायद इस बार राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान मिलेगा और नन्हे मुन्ने बच्चे ही नहीं बड़े और बुजुर्ग भी बड़े सम्मान के साथ कह सकेंगे कि हम हिंदी हैं।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर छोड़ी छाप
डॉ आर एस सेंगर द्वारा किसानों एवं अन्य नागरिकों के हित में हिंदी के सेवक बनकर काम कर रहे हैं। अपनी साधना के बल पर उन्होंने इस विधा में भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। लगभग 27 वर्ष से शिक्षा शोध एवं प्रसार के कार्य में लगे प्रोफेसर आर एस सेंगर ने युवाओं को मातृभाषा का महत्व बताया। उन्होंने अनेक लेख लिख कर लघु कथाएं लिखकर विज्ञान के चमत्कार को रोचक हिंदी भाषा में लिखकर तथा विज्ञान साहित्य को सरल और सुबोध भाषा हिंदी में लिख कर आम जनता तक पहुंचाने का कार्य किया है। डॉ सेंगर ने अपनी लेखनी से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए हिंदी को हथियार बनाया तथा विज्ञान कुरुक्षेत्र भाषा में लिख कर आमजन तक उसका प्रचार प्रसार किया। हिंदी में चिंतन, हिंदी में लेखन साहित्य प्रेम को उन्होंने पूंजी समझा है।

विज्ञान को हिंदी की भाषा में समझाया
डॉ आर एस सेंगर ने विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति समझ विकसित करने में हिंदी भाषा में रोचक तरीके से लेख लिख कर कार्टून बनाकर तथा एनिमेशन के माध्यम से विज्ञान को रोचक बनाया। लॉकडाउन के दौरान भी वे हिंदी भाषा में शिक्षा की अलग को जगाते रहे और रोचक वीडियो तैयार करके लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया। सही मायने में देखा जाए तो हिंदी मातृभाषा हमें आपस में जोड़ती है और हिंदी सहज भाषा नहीं हमारा एक भाव है इसलिए हम सभी की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हिंदी को अधिक से अधिक प्रचारित और प्रसारित करें तभी एक वैज्ञानिक की सोच आमजन तक पहुंच पाएगी।

छोटे से गांव में हुआ पालन पोषण
डॉ आरएस सेंगर ने बताया कि मैं पूर्व में इटावा जिले लेकिन अब औरैया जिले के एक छोटे से गांव अयाना भूरे पुर खुर्द में पैदा हुआ। मेरे पिता डॉक्टर सावल सिंह सेंगर उस वक्त आगरा विश्वविद्यालय में एमएससी की पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने खेती किसानी के पैसे को अपनाते हुए कठिन मेहनत करके रोजाना लगभग 20 किलोमीटर पैदल गांव से कस्बे में कॉलेज में पढ़ने के लिए जाते थे। घर में धन के अभाव में मैंने अयाना गांव में जूनियर हाई स्कूल तक की पढ़ाई की। इसी दौरान मैंने खेती-किसानी को पास से देखा और हाथ भी बटाया। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पढ़ाई के साथ-साथ खेती करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसी दौरान मेरे पिताजी डॉक्टर सावन सिंह सेंगर नेशनल डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल में पीएचडी के छात्र थे। उनके पास भी खर्च एवं फीस के लिए फैलोशिप मिलने के बाद भी पैसे कम पड़ जाते थे। घर से ज्यादा अच्छा सपोर्ट ना होने के कारण वह अपनी कड़ी मेहनत से ही अपना काम चलाते थे।

पढ़ायी के दौरान की खेती
उस दौरान मैंने गांव में रहकर पढ़ाई की और खेती को पास से देखा उसी दौरान खेती से जुड़ी समस्याओं को मैंने करीब से महसूस किया और पाया कि मेरे गांव यमुना के किनारे के बेहन का क्षेत्र होने के कारण पानी की कमी के साथ-साथ मिट्टी की भी कम उपजाऊ होने के कारण पैदावार बहुत कम होती थी। जिस कारण किसानों की परेशानियां और भी अधिक थी यातायात के साधन भी उन दोनों बहुत कम थे जिससे सभी को काफी परेशानी होती थी।

कक्षा 9 में बरेली लिया दाखिला
जब मेरे पिताजी वर्ष 1978 में वैज्ञानिक की नौकरी बरेली में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान से प्रारंभिक की तभी हम लोगों ने बरेली में आकर कक्षा 9 में दाखिला लिया इसके बाद मेहनत करके हम एमएससी तक पहुंचे और इसके बाद पीएचडी करने के उपरांत पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर में वर्ष 1993 से शिक्षण शोध एवं प्रसार का कार्य प्रारंभ कर दिया।

पिताजी को था साहित्य से लगाव
मेरे पिताजी को साहित्य बेहद लगाव था हमारे घर में किताबों का अच्छा संग्रह था लेकिन पिताजी पशु पोषण विज्ञान के एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक थे इसलिए उत्साहित का उपयोग मैं अधिक नहीं कर सका। मैंने उस पशु पोषण के साहित्य को कई पुरस्कारों में दान कर दिया जिससे उन किताबों का उपयोग उन विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के छात्र कर सके जो वहां शिक्षा लेने आते हैं इस तरह मेरा जीवन किताबों और पत्रिकाओं के बीच अच्छा बीता।
मैंने गांव में रहते हुए किसानों के दर्द को महसूस किया इसलिए सोचा था कि यदि मौका मिला तो किसानों के लिए काम करूंगा कृषि विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य प्रारंभ करने के उपरांत मैंने किसानों के बीच आना-जाना प्रारंभ किया और लघु एवं सीमांत किसानों के लिए कार्य प्रारंभ कर दिया।

किसानों को सरल भाषा में देने का उठाया बीड़ा
मैंने सोचा कि किसी के ज्ञान को किसानों के द्वार तक हिंदी सरल भाषा में पहुंचाना चाहिए जिससे किसान नई तकनीकों को अपनाकर अपनी उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं इसी को ध्यान में रखकर मैंने किसानो के केंद्र में रखकर रोचक भाषा में लिखने का कार्य प्रारंभ किया वैसे तो मैंने विज्ञान के विविध विषय पर लिखा है लेकिन मुक्त या मेरे लेखन में किसानों की समस्याओं का चित्रण अधिक है साथ ही साथ मैंने विज्ञान को रोचक बनाने के लिए भी कई कॉलम हिंदी में लिखे हैं जिसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। मैंने किसानों की समस्याओं का चित्रण करते हुए लघु एवं सीमांत किसानों की बदहाली कर्ज न चुकाने के कारण बढ़ती दुखद खुदकुशी की प्रवृत्ति नशे की जकड़ में आती हुई युवा पीढ़ी नई तकनीकों से रूबरू किसानों की आय कैसे दुगनी हो इसकी तकनीक जानकारी आदि विषयों पर विशेष लेख लिखे हैं साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अंग्रेजी भाषा में किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं दो किताबें आधुनिक जैविक खेती एवं बायोडीजल नामक हिंदी में लिखी गई पुस्तकें काफी पसंद की गई और आज भी काफी संख्या में उनकी बिक्री हो रही है।

पंतनगर में शुरू किया शोध एव प्रसार का कार्य
पंतनगर विश्वविद्यालय में 1993 से शिक्षा शोध एवं प्रसार का कार्य प्रारंभ किया इसी दौरान देखा कि अधिकतर वैज्ञानिक रिसर्च पेपर इंग्लिश में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित करने के उपरांत अपने प्रमोशन के लिए कार्य करते थे। मैंने देखा कि इन बायोडाटा में लिखे गए लेखों की उपयोगिता ना तो किसान कर पा रहे थे ना ही वह आमजन के लिए उपयोगी हो रहे थे। क्योंकि उस भाषा को सभी को समझ पाना एक बहुत कठिन कार्य था। मैंने उसी दौरान सोचा कि मैं इस शोध को सरल और हिंदी भाषा में लिखकर आमजन तक पहुंच जाऊंगा, जिससे हमारे भारतीय किसानों तथा अन्य युवाओं को इसमें उपयोगी साहित्य को पढ़कर लाभ उठा सकें। उसी दौरान मैंने अच्छे इंग्लिश में प्रकाशित लिखों का हिंदी अनुवाद करके उसको रोचक भाषा में परिवर्तित कर किसानों एवं युवाओं के द्वार तक लेख के माध्यम से पहुंचाने का कार्य प्रारंभ किया।

किसान भारती का बनाया संपादक
इसी दौरान मुझे बंद कर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित देश की विश्व विख्यात पत्रिका किसान भारती का संपादक बनाया गया। मैंने वर्ष 2003 तक इस पत्रिका का संपादन का कार्य भी प्रारंभ किया। यह पत्रिका किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय थी। वर्ष 2003 में मुझे सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बनने का मौका मिला। मैंने शिक्षा शोध एवं प्रसार के कार्यों के साथ-साथ किसानों के लिए हितकारी पत्रिका कृषि दर्शिका का संपादन का कार्य प्रारंभ किया जो आज भी विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित की जा रही है। इन पत्रिकाओं के माध्यम से किसी के जान को किसानों तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है। जिसका लाभ ग्रामीण युवाओं और किसानों को मिलता है और वह अपने घर बैठे ही तकनीकी ज्ञान को अर्जित करके अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं।

किसानों के मामले में उदार हो सरकारें
एक साहित्यकार और वैज्ञानिक शिक्षक के तौर पर मेरा मानना है कि किसी भी सरकार को किसानों के मामले में उदार और अत्यंत संवेदनशील होना चाहिए अपनी किताबों और लेखों के जरिए यदि में किसानों तक नई तकनीकें पहुंचाने में सफल हो सके और उन्होंने तकनीकी ज्ञान को अपना लिया तो मैं तकनीकी ज्ञान और संपन्न किसान के नारी को सफल कर सकूंगा तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा। मैं चाहता हूं कि देश में किसी शिक्षा का एक ऐसा ढांचा तैयार हो जहां शिक्षक शिक्षा शिष्य किसान के बीच कोई अवरोध दिक्कत ना हो सही मायने में इसको स्थान तभी मिल सकता है जब हम राष्ट्रभाषा हिंदी में कार्य करते हुए अपनी बात को सभी के सामने रखेंगे। मैंने अपने लेखन में लेफ्ट ब्लेंड फार्मूला पर ध्यान केंद्रित करते हुए लेखन तथा शोध का कार्य प्रारंभ किया जिसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।

किसानों का दर्द आता है सामने
लेखक वही व्यक्ति होता है जो वर्षों ध्यान पूर्वक अपने अंदर दूसरे की खोज करने की कोशिश करता है और उस दुनिया की तलाश करता है जिसने उसे बनाया है कि वह कौन है जब मैं लिखने की बात करता हूं तो सबसे पहले मेरे जीवन में किसानों का दर्द सामने आ ही जाता है। उसी वक्त मैं अपने को एक कमरे में बंद कर लेता हूं मेज पर अकेले बैठता हूं और अपने अंतस में उतरता हूं। तभी हिंदी के शब्दों का भंडार मेरी नजरों के सामने आता है और मस्तिष्क में तेजी से चलने रखता है। उसी वक्त मैं शब्दों के जरिए एक नई दुनिया का निर्माण लेखन के रूप में करता हूं। यह सभी चीजें तभी होती है जब कोई मैच पर बैठता है और ध्यान पूर्वक अपने अंतस को शब्दों में डालता है। इस कार्य को हर खुशी और जिद के साथ करना होता है। जब मैं लिखने बैठता हूं तो नए शब्दों को शादी पेसफर लिखता हूं और मुझे लगता है कि मैं एक नई दुनिया बना रहा हूं कुछ उसी तरह जैसे कोई ईंट से ईंट को जोड़कर इमारत या गुंबद का निर्माण कर रहा होता है। हम लेखक किसानों की जिस नई दुनिया के सृजन के लिए कार्य करते हैं उसमें ईट का कार्य शब्द करते हैं तभी उस कोर्ट का लेखन हो पाता है।

साहित्य और विज्ञान दोनों से जुड़े हैं
हिंदी के माध्यम से विज्ञान को पढ़ने वाले पाठकों में ज्यादातर लोग डॉ आर एस सेंगर से परिचित है। हिंदी भाषी प्रांतों के पाठकों के दिनों में उनके लिए आदर का भाव हमेशा रहा है और हमेशा के लिए बना रहेगा स्वतंत्र विज्ञान लेखन के लिए प्रसिद्ध डॉ आर एस सेंगर लगातार हिंदी भाषा में साहित्य का सृजन कर रहे हैं, जिसकी चारों तरफ सराहना की जा रही है। वरिष्ठ विज्ञान कथाकार और लेखक डॉ सेंगर उन विरले साहित्यकारों में से है जो विज्ञान और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में अभिन्न और आत्मीय रूप से जुड़े हुए हैं। एक और जहां वह विगत 27 वर्षों से आमजन के लिए विज्ञान लिख रहे हैं वहीं दूसरी ओर अपनी विज्ञान कथाओं और मासिक संस्थानों में साहित्यिक रचना हिंदी में लेखन कर काफी सक्रिय हैं। डॉ सेंगर के ही शब्दों में वे साहित्य की कलम से विज्ञान लिखते हैं इस कारण उनका लिखा विज्ञान सरस हो जाता है और आमजन को वह किससे और कहानियों की तरह ही रोचक लगता है डॉ सेंगर ने विविध शैलियों में विज्ञान का लेखन कर विज्ञान सरस एवं रचित पूर्वक बनाकर पाठकों तक पहुंचाने का अथक प्रयास किया है।

हिंदी के विकास के लिए लक्ष्य करना होगा निर्धारित
डॉ सेंगर का कहना है की हिंदी साहित्य का यदि विकास करना है तो निश्चित रूप से हम सभी को अपना लक्ष्य निर्धारित करना होगा तभी हम आगे बढ़ पाएंगे। क्योंकि लक्ष्मी व्यक्ति जिंदगी में कभी भी सार्थक कार्य नहीं कर सकता। मनुष्य विकसित एवं विकासशील होता है उसे हमेशा महत्वकांक्षी होना चाहिए और जिंदगी के लिए निश्चित लक्ष्य आशा निर्धारित करना चाहिए। एक बार लक्ष्य निर्धारित कर लेने के बाद मनुष्य कभी भी अपनी राय से भटकता नहीं है। लक्ष्मी मनुष्य का जीवन पशु समान होता है आज दुनिया का विकास बहुत तेजी से हो रहा है और हर कदम पर हमें प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है इसलिए हर व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित करना ही होगा और यदि वह अपनी मातृभाषा में अपने लक्ष्य को निर्धारित करने के लिए आगे बढ़े तो निश्चित रूप से उसको सफलता मिलती है।



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