पूर्व मुख्यमंत्री को कुर्सी से हटाने वाले विधायक ही बनेंगे भाजपा की सत्ता से बेदखली का कारण





नवीन चौहान

त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने वाले विधायक ही भाजपा की सत्ता से बेदखली का सबसे बड़ा कारण बनेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी ही भाजपा विधायकों को रास नही आई। भाजपा हाईकमान भी अपने मुख्यमंत्री की ईमानदारी को समझने में नाकाम रहा। एक साधारण इंसान और शानदार व्यक्तित्व के धनी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरेगी। प्रदेश की जनता कोरोना संक्रमण काल में अपने पूर्व मुख्यमंत्री को याद कर रही है। कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की दूरदर्शी सोच को सलाम कर रही है। आखिरकार भाजपा हाईकमान के नेतृत्व परिवर्तन करके प्रदेश की जनता के साथ जो मजाक किया, इसका जबाब तो आने वाले चुनाव में मिल जायेगा।
साल 2017 के विधानसभा चुनावों
में मिले प्रचंड बहुमत के बाद भाजपा हाईकमान ने प्रदेश को मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिया। संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े त्रिवेंद्र सिंह रावत एक साधारण इंसान और असाधारण व्यक्तित्व के धनी है। बेसहारा पशु — पक्षियों से प्रेम करना, घायल पशुओं की सेवा करना और गरीबों के हितों की रक्षा करना त्रिवेंद्र की पहली प्राथमिकता रही है। प्रदेश के सर्वोच्च मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहने के दौरान भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी ईमानदारी की अलख को जगा कर रखा और शुरूआत ही जीरो टॉलरेंस की मुहिम से शुरू की। अंहकार से कोसो दूर रहते हुए प्रदेशवासियों के हितों की योजनाओं को धरातल पर उतारने का प्रयास किया। उनका कोमल हृदय किसी भी इंसान को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। उत्तराखंड के प्रति उनका असीम प्रेम जगजाहिर है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी का उन्होंने हमेशा मान बढ़ाया। सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए राजनीति की और अपने की विधायकों के परिवार में बेगाने बने रहे। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहने के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ईमानदारी और पारदर्शिता की सोच को आगे बढ़ाते हुए नौकरशाही में ईमानदार अफसरों का बेहतर चयन किया। उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल में कर्तव्यनिष्ठ अफसरों को ही जिलों की जिम्मेदारी दी। त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा विधायकों के मंसूबों को पूरा करने में नाकाम साबित हुए। भाजपा विधायकों के गलत कृत्यों को उन्होंने कभी मंजूरी नही दी। मुख्यमंत्री की कुर्सी से विदाई को भी सहर्ष स्वीकार किया।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर भाजपा हाईकमान ने बड़ी भूल की या उत्तराखंड की राजनीति को अस्थिर करने का प्रयास किया, यह तो आने वाला वक्त बतायेगा। अगर उत्तराखंड की जनता के परिपेक्ष से देखा जाए तो भाजपा हाईकमान का मुख्यमंत्री बदलने का यह गलत निर्णय साबित होगा। आने वाले चुनावों में भाजपा की फजीहत होगी और सत्ता गंवानी पड़ सकती है। जिन भाजपा विधायकों की नाराजगी को साधने के लिए हाईकमान ने त्रिवेंद्र को कुर्सी से हटाया, ऐसे तमाम विधायक पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बनेंगे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 60 प्लस का अनुमान लगा रहे है। लेकिन हकीकत में भाजपा की सत्ता से विदाई का वक्त नजदीक आता जा रहा है। भाजपा विधायकों के​ रिपोर्ट कार्ड की स्थिति बेहद दयनीय है।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में अगर साल 2022 काविधानसभा चुनाव होता तो भाजपा 45 से अधिक सीटे जीतकर सत्ता हासिल कर सकती थी। त्रिवेंद्र की ईमानदारी भाजपा को एक बार फिर सत्ता दिलाने में कामयाब रहती। लेकिन वर्तमान स्थिति और मुख्यमंत्री ​तीरथ सिंह रावत के दो महीने के कार्यकाल के बाद भाजपा की स्थिति दिन प्र​तिदिन बिगड़ती जा रही है। प्रदेश में भाजपा के प्रति अविश्वास उत्पन्न हुआ है। प्रदेश में माफिया लॉबी हॉबी हो चुकी है। खनन माफिया क्षेत्रों में सक्रिय हो चुके है। कुल मिलाकर उत्तराखंड की जनता और भाजपा के लिहाज से नेतृत्व परिवर्तन भाजपा हाईकमान का एक गलत निर्णय साबित होगा।

हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुर्सी से हटने के बाद कभी पार्टी लीक से हटकर कोई बयान नही दिया। उन्होंने अपनी पार्टी की किरकिरी नही कराई। और ना ही नाराज विधायकों के खिलाफ एक बयान दिया। जनता की सेवा में निरंतर सक्रिय है। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए प्रदेश की जनता को जागरूक करने में अपना योगदान दे रहे है। त्रिवेंद्र प्रदेश की जनता की समस्याओं को दूर करने में संजीदा है। उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी खोने का कोई मलाल नही है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर ईमानदारी से कार्य करने पर गर्व जरूर महसूस करते है। उनकी ईमानदारी ही उनकी प्रेरणा है।



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