नवीन चौहान
उत्तराखंड की राजनीति के कद्दावर नेताओं में शुमार केदार सिंह फोनिया के पार्थिव शरीर को खड़खड़ी श्मशान घाट पर लाया गया। उनके बेटे विनोद फोनिया ने चिता को मुखाग्नि दी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने श्मशान घाट पहुंचकर उनको अंतिम विदाई दी। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राजनीति में शुचिता और आदर्शो की मिशाल कायम करने वाले केदार सिंह फोनिया का निधन अपूणीय क्षति है। वह सभी के प्रेरणास्रोत्र है।
शनिवार की सुबह करीब 11 बजे उनके पार्थिव शव को खडखड़ी श्मशान घाट पर लाया गया। जहां पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनके पार्थिव शव पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस दौरान उनके बेटे आईएएफ विनोद फोनिया ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वर्गीय केदार सिंह फोनिया के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका निधन एक युग का समापन के समान है। फोनिया जी का राजनैतिक जीवन आदर्शो पर आधारित था। साल 1991 में जब वह पहली बार विधायक बने तो मेरा संबंध जुड़ा।
उन्होंने कभी किसी लालच या दबाब में समझौता नही किया। वह हमेशा उत्तराखंड का पर्यटन के क्षेत्र में सर्वोपरि बनाने में जुटे रहे। उनकी पर्यटन में विशेष रूचि थी। पद से चिपकने की कोई इच्छा कभी नही रही। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनका एक स्मरण बताया कि मैंने चुनाव लड़ने से मना किया तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का मौका दिया। राजनीति में ऐसे महापुरूष केदार सिंह फोनिया रहे है। अंतिम संस्कार में उनकी तीनों बेटियां भारती, निरजा और दीपाली भी शामिल हुए।
बताते चले कि केदार सिंह फोनिया उत्तराखंड की राजनीति के एक दिग्गज कददावर नेता रहे है। उत्तराखंड सरकार में पर्यटन विभाग में कार्यरत थे। जनवरी-फरवरी 1969 को उत्तर प्रदेश में मध्यावती चुनाव हुए। इसमें केदार सिंह फोनिया नौकरी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन हार गए। उत्तराखंड की राजनीति के कद्दावर नेताओं में शुमार और भाजपा के वरिष्ठ नेता केदार सिंह फोनिया के राजनीति के शुरुआती और आखरी पन्ने काफी उतार चढ़ाव भरे रहे हैं। वे अपना पहला और अंतिम चुनाव हारे थे। खास बात यह है कि दोनों चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़े थे। केदार सिंह फोनिया की पर्यटन के क्षेत्र में गहरी पकड़ थी। केदार सिंह फोनिया केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग में कार्यरत थे सेवानिवृत्त होने के बाद वे 1991 में भाजपा से जुड़े। इसी साल विधायक का चुनाव जीते और यूपी में पर्यटन व संस्कृति मंत्री बने।अंतिम संस्कार में भाजपा के पूर्व राज्यमंत्री शमशेर सिंह सत्याल भी मौजूद रहे और शोकाकुल परिवार का ढांढस बंधाया। जबकि बद्रीनाथ के विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी भी मौजूद रहे।