नवीन चौहान.
मतगणना का दिन नजदीक आते आते प्रत्याशियों की दिलों की धड़कन लगातार बढ़ रही है। कांग्रेस लगातार दावा कर रही है इस बार प्रदेश में उसकी सरकार आ रही है। भाजपा चुनाव से पहले जो अबकी बार 60 पार का नारा लगा रही थी वह अब चुपचाप सी बैठी है। वह दावा तो कर रही है कि प्रदेश में उनकी सरकार आ रही है लेकिन उनके दावे में वो जोश नहीं दिख रहा है जो कांग्रेस के दावे में लोगों को दिख रहा है।
ऐसे में सवाल यही है कि चार साल पहले तक प्रदेश में जब चारों और भाजपा के कार्यों की प्रशंसा हो रही थी, कोरोना काल में भी जिस कुशलता और सूझबूझ के साथ प्रदेश की जनता को इस महामारी से बचाने के लिए सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए उसकी जनता ने खुलकर सराहना की। इस पूरे कार्य का श्रेय गया पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को। उनके चार साल के कार्यकाल में प्रदेश में सुशासन का राज रहा। जनता के हितों के फैसले लिए गए, लेकिन अचानक कुछ विधायकों की मनमानी के चलते पार्टी हाईकमान ने अचानक त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली बुलाया और उन्हें कुर्सी छोड़ने के लिए कह दिया।
त्रिवेंद्र सिंह रावत भी हाईकमान के इस फैसले से स्तब्ध रह गए, उनकी समझ में नहीं आया कि जब प्रदेश में उनके नेतृत्व में सरकार ठीक काम कर रही है तो फिर कुर्सी से उन्हें हटाने का कारण क्या है, लेकिन पार्टी के प्रति अपनी पूरी निष्ठा रखने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक बार भी हाईकमान के इस फैसले का विरोध नहीं किया ओर कुर्सी छोड़ दी, उनके स्थान पर पार्टी ने तीरथ सिंह रावत को बैठाया। लेकिन यह फैसला भी सही साबित नहीं हुआ, तीरथ सिंह रावत अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में आए और उन्हें भी हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बना दिया गया।
पार्टी को उम्मीद थी कि युवा पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा और अधिक मजबूत होगी, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर विपक्ष जिस तरह से दावे कर रहा है उसके चलते लग रहा है कि पुष्कर सिंह धामी भी पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। ऐसे में यदि पार्टी इस बार सत्ता में नहीं आती है तो इसका पूरा ठीकरा वर्तमान सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पर फूट जाएगा। ऐसे में यदि प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन पार्टी की उम्मीदों के अनुकूल नहीं रहता है तो पार्टी हाईकमान को फिर अपने उस फैसले पर अफसोस होगा जो उसने त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी से हटाने का लिया था।
प्रदेश की जनता जानती है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ईमानदार छवि वाले सीएम साबित हुए हैं। उनके कार्यकाल में प्रदेश में एक भी घोटाला सामने नहीं आया, भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया, सवाल जनता का यही है कि आखिर ऐसा कौन सा कारण था जिसकी वजह से लोकप्रिय सीएम को कुर्सी से हटाना पड़ा। अब देखना यही है कि आने वाली 10 मार्च को जनता जर्नादन ने किसे अपना बहुमत दिया है। भाजपा को उम्मीद है कि प्रदेश में भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहराएगी।