कोरोना काल में इंसानी जीवन मुश्किल, गरीब को रोटी और अमीर को जीवन का संकट




नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण में इंसानी जीवन खौफजदा है। इंसान की रूह कांपने लगी है। कोरोना संक्रमण अपने पूरे प्रवाह में है। इंसानी व्यवस्थाओं को धता बताते हुए आगे बढ़ रहा है। दुनिया के वैज्ञानिक इस महामारी का उपाय खोजने में लगे है। भारतीय वैज्ञानिकों की वैक्सीन राहत देने वाली है। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर बेहद ही भयावह बनकर उभर रही है।

मरीजों के ​लिए आक्सीजन, वैंटीलेटर, अस्पताल के बेड सभी कम पड़ रहे है। अस्पताल कोरोना मरीजों से भरे पड़े है। श्मशान में चिताओं की वेटिंग चल रही है। सरकार असमंजस में है। प्रशासन और पुलिस अपनी जान जोखिम में डालकर कोविड मरीजों की सेवाएं कर रहे है। लेकिन सबसे बड़ी बात गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी का संकट कोरोना संक्रमण से बड़ा है।
साल 2020 में चीन के बुहान से भारत पहुंचा कोरोना संक्रमण साल 2021 में तेज प्रवाह से गतिमान है। संक्रमण का प्रभाव ऐसा कि हर तीसरा आदमी खांसता दिखाई पड़ रहा है। कोविड गाइड लाइन का सख्त अनुपालन कराने के निर्देश केंद्र सरकार ने दिए है। कई राज्यों में लॉकडाउन लगा हुआ है।

उत्तराखंड में हरिद्वार की बात करें तो यहां बेहद ही संकट की स्थिति है। लॉकडाउन के चलते बाजार बंद है। दो वक्त की रोटी के गरीब मजदूर बेबस नजर आ रहे है। मध्यमवर्गीय लोग अपने कारोबार और कर्ज की चिंता से परेशान है। वही दूसरी ओर कोरोना संक्रमण की महामारी ने घेर रखा है। मुंह पर मास्क लगाकर घरों में कैद है। हालात बेहद ही चिंताजनक होते जा रहे है। आने वाले दिनों में हालात बहुत मुश्किल भरे दौर से गुजरेंगे। कुछ भी कहना संभव नही हो पा रहा है।
जिला प्रशासन की बात करें तो वह इंसानी जीवन को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे है। अस्पतालों में आक्सीजन, वैंटीलेटर की व्यवस्था कराने के लिए पूरे प्रयास जारी है। चिकित्सकों की मानसिक हालात खराब होने लगी है। अब अगर बात करें तो अपना जीवन बचाने की जिम्मेदारी खुद इंसान की है। अगर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया तो कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है। अन्यथा जीवन और मौत के बीच एक बार मुकाबला करना ही होगा।



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