नवीन चौहान
हरिद्वार का व्यापारी मानसिक रूप से परेशान हो चुका है। उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुकी है। करीब एक साल से अधिक वक्त से व्यापारी आर्थिक संकट से मुकाबला कर रहा है। बैंक और सूदखारों के कर्ज ने उनकी नींद उड़ा दी है। व्यापारियों के परिवार भूखमरी के कगार पर पहुंच चुके है। व्यापारियों के मुस्कराते चेहरे के पीछे आर्थिक संकट का दर्द छिपा हुआ है। करीब एक साल से भी अधिक वक्त से उनका कारोबार चौपट हो चुका है। सरकार की संवेदनहीनता ने व्यापारियों को मानसिक तौर पर कमजोर किया है। ऐसे में व्यापारियों को काउंसलिंग की जरूरत है। सरकार ने व्यापारियों की सुध नही ली तो वह दिन अब दूर नही जब अनहोनी की खबरे सामने आए। सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि व्यापारियों को संभाले और उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में कदम उठाए।
देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में व्यापारियों का सर्वाधिक योगदान होता है। व्यापारी वर्ग ही देश में टैक्स जमा करता है। व्यापारियों के जमा कर से ही देश में विकास संबंधी कार्यो को मूर्तरूप दिया जाता है। अगर उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में हरिद्वार के व्यापारियों का बड़ा योगदान है। लेकिन विगत एक साल से हरिद्वार के व्यापारियों की हालत बेहद चिंताजनक है। पर्यटन से जुड़ा कारोबार चौपट हो चुका है। यात्रियों बाहुल्य हरिद्वार में व्यापारी भूख से मरने के कगार पर पहुंच चुका है। होटल इंड्रस्टी, ट्रैवल कारोबार, हैंडीक्राफ्ट का बाजार, टैक्सी चालक सभी की हालात खस्ता हो चुकी है। समाज का यह सम्मानित वर्ग मदद की गुहार तक नही लगा सकता। हरिद्वार का सम्मानित वर्ग मुसीबत के दौर से गुजर रहा है। वही दूसरी ओर बैंक कर्ज और सूदखोरों के ब्याज ने उनको मानसिक रूप से तोड़ दिया गया।
कुंभ पर्व में भी व्यापारियों को निराशा हुई। हरिद्वार के व्यापारियों की मनोदशा को समझने में सरकार और प्रशासन नाकाम रहा। जिसके चलते उनकी आखिरी उम्मीद को भी करारा झटका लगा। कुंभ के दौरान व्यापारियों ने लाखों का माल स्टॉक कर लिया था। लेकिन अब वो माल गोदाम में सड़ रहा है। व्यापारियों ने अपना आक्रोष व्यापारी नेताओं पर उतार दिया। लेकिन व्यापारियों की मनोदशा को कोई समझने को तैयार नही है।