पूर्व सीएम त्रिवेंद्र ने हरक के बांधे हाथ और धामी का सरेंडर बेकार





नवीन चौहान
उत्तराखंड की भाजपा सरकार को असहज करने वाले हरक सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरी तरक से काबू में रखा था। हरक के किसी भी प्रकार के मंसूबे पूरे नही हो पाए। हरक को अपने चहेतों की पोस्टिंग से लेकर तमाम मनमर्जी कार्यो पर त्रिवेंद्र ने रोक लगाकर रखी। इसी के चलते हरक सिंह रावत त्रिवेंद्र को तिरछी आंखों से देखते रहे। बीते चार सालों में त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए मुश्किले खड़ी करते रहे। आखिरकार त्रिवेंद्र रावत की सरकार के चार साल पूरे होने से पूर्व ही भाजपा हाईकमान को दबाब में लेकर त्रिवेंद्र को बदलने की जिदद भी पूरी करा ली। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरक के सामने खुद को पूरी तरह से सरेंडर किया। लेकिन इन सबके बाबजूद भाजपा ​हरक सिंह रावत को संभाल नही पाई और वह कांग्रेस की ओर निकल चले।
संघ की पाठशाला से राजनीति के अनुभवी छात्र त्रिवेंद्र सिंह रावत एक ईमानदार और कड़क छवि वाले मुख्यमंत्री साबित हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बाद जीरो टालरेंस की मुहिम को शुरू किया और सार्थक कर दिखाया। नौकरशाहों पर मजबूत पकड़ और ईमारदार प्रशासकों की तैनाती ने उनकी योग्यता को साबित किया। लेकिन इससे बड़ी बात की कांग्रेसी विचारधारा के भाजपा विधायकों पर लगाम लगाकर रखी।
हां पर बात समझने की है। भाजपा 57 विधायकों के साथ प्रचंड बहुमत से सरकार में आई थी। जिसमें यशपाल आर्य और हरक सिंह रावत जैसे कांग्रेसी विधारधारा के राजनैतिक दिग्गज खिलाड़ी भाजपा ​के विधायक थे। लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को। बस यही बात यशपाल आर्य और हरक सिंह रावत को खटकने लगी। हालांकि त्रिवेंद्र ने अपने अनुभव और राजनैतिक कौशल के चलते इन दोनों नेताओं की एक नही चलने दी। त्रिवेंद्र केबिनेट का हिस्सा बने हरक और यशपाल अपने विभागों पर भी मनमर्जी नही कर पाए। त्रिवेंद्र की पैनी नजर बनी रही।
आखिरकार हरक सिंह रावत ने दांव चला और त्रिवेंद्र की कुर्सी खिसकाने के लिए चक्रव्यू रच दिया। बंगाल चुनाव का वक्त और भाजपा हाईकमान को असहज कर दिया। भाजपा हाईकमान ने हरक सिंह रावत को पार्टी में बनाए रखने के लिए अपने ईमानदार कार्यकर्ता त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फरमान सुना दिया।
हरक खुश तो बहुत हुए लेकिन मुख्यमंत्री बनने के उनके मंसूबे अधूरे रह गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बने तो वह हरक सिंह रावत के सामने सरेंडर कर गए। उन्होंने हरक को खूब मनाया। हरक के कई गलत कार्यो पर सहमति दी। हरक के चहेते अधिकारियों की मनचाही पोस्टिंग दी। लेकिन यहां भी हरक खेला कर गए। पुष्कर से काम कराए और भाजपा से किनारा कर लिया।
तो क्या मान लिया जाए कि हरक की जिदद के आगे त्रिवेंद्र को बदलना भाजपा हाईकमान की एक बड़ी भूल साबित हुआ। त्रिवेंद्र के राजनैतिक अनुभव को हाईकमान समझने में चूक कर गया। जिस हरक को त्रिवेंद्र ने काबू रखा और भाजपा में बनाए रखा तो अब हरक भाजपा से दूर कैसे चले गए।
कुल मिलाकर देखा जाए तो हर​क सिंह रावत उत्तराखंड की पूरी भाजपा में उथलपुथल मचाकर चले गए।



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