आयुर्वेद शल्य को लेकर शंका करना अज्ञानता व समाज में भ्रम फैलाने जैसा: आचार्य बालकृष्ण




नवीन चौहान
एलोपैथ के डाॅक्टरों के तर्क को पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने आधार व तथ्यहीन करार दिया है। आचार्य ने बताया कि पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय में परास्नातक में सर्जरी की विधिवत शिक्षा भी प्रदान की जाती है, जिसमें अभी तक कई योग्य विद्वान डॉक्टर तैयार होकर रोगियों की सेवा कर रहे हैं। अभी भी अनेक छात्र सर्जरी की पढ़ाई पतंजलि आयुर्वेद के महाविद्यालय में कर रहे हैं। अतः आयुर्वेद शल्य को लेकर शंका करना अज्ञानता व समाज में भ्रम फैलाने के अलावा और कोई कारण नहीं। हम सबको समाज को गुमराह करने के कार्यों से बचकर रोगी को ठीक करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
आचार्य बालकृष्ण महाराज ने शल्य चिकित्सा पर ज्ञान साझा करते हुए बताया कि शल्यतंत्र (सर्जरी) आयुर्वेद में वर्णित एक प्राचीन विधा है। प्राचीन अष्टांग आयुर्वेद में सर्जरी को मुख्य चिकित्सा विधा के रूप में उल्लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में सर्जरी को आयुर्वेद के अनेक विधाओं का वर्णन करते हुए शल्य चिकित्सा या सर्जरी को प्रथम स्थान पर वर्णन किया गया है। बताया कि शल्यं, शालक्यं, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्यं, अगदतंत्रा, रसायनतंत्रा, वाजीकरणतंत्राम् इति। महर्षि सुश्रुत जिनको शल्यतंत्र का जनक भी कहा जाता है उन्होंने ही विश्व की प्रथम शल्य चिकित्सा (600 ई.पू.) में पूर्ण की थी। सुश्रुत संहिता में शल्यतंत्र का बहुत ही विशद् व विस्तृत रूप में उल्लेख किया गया है। जिसमें तत्रा, शल्यं नाम विविध् तृण, काष्ठ, पाषाण, पांशु, लोह, लोष्ट, अस्थि, बाल यकेशद्ध, नख, पूय, ड्डाव, दुष्टव्रण, अन्तर्गर्भ, शल्यो(रणार्थ, यंत्रा-शस्त्रा-क्षार-अग्नि-प्रणिधन व्रणविनिश्च्यार्थ च।
आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि वर्तमान में शल्य में प्रयुक्त होने वाली अष्टविध शस्त्रकर्म आचार्य सुश्रुत की ही देन हैं। इन शल्तंत्र को ही पाश्चात्य वैद्यक में सर्जरी कहते हैं। आयुर्वेदोक्त शल्य कर्म में अनेक सूक्ष्मताओं का वर्णन किया गया है जिन्हें छेदन, भेदन, लेखन, वेघन, एषण, आहरण, विस्रावण, सीवन। इन आठ कर्मों द्वारा पूर्ण शल्य क्रिया की जाती है। प्लास्टिक सर्जरी (संधन क्रिया) जिह्ना, नेत्र, कर्ण, दन्त, नासा तथा मुखरोग इन सभी रोगों की शल्य चिकित्सा भी आचार्य सुश्रुत द्वारा वर्णित विधाओं का ही प्रचलन मात्र है, अतः आचार्य सुश्रुत ही आधुनिक सर्जरी के जनक हैं।
पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार ने पूरे विश्व में अपनी चिकित्सा पद्धति योग, आयुर्वेद को वैज्ञानिक अनुसंधान व अनेक प्रमाणों द्वारा नये आयाम स्थापित किए हैं। उन उपलब्ध्यिों के साथ आयुर्वेद में वर्णित शल्य विध को पुनर्स्थापित करने का कार्य भी पतंजलि द्वारा बड़े स्तर पर किया जा रहा है। पिछले दस वर्षों से यहाँ हजारों रोगियों की शल्य चिकित्साध् शल्य क्रियाएँ की जा रही हैं। इसमें बवासीर (पाइल्स), भगंदर (फिस्टुला), परिकर्तिका ( फिशर), नाड़ीव्रण (पिनोडिनल साइनस), आंत्रावृद्धि रोग (हर्निया), हाइड्रोसिल (मूत्रावृद्धि), फायमोसिस (निरुद्ध प्रकश), विद्रधि (एबसस), ग्रंथि रोग (सिस्ट, लिम्फोमा) आदि की सर्जरी की जाती है।
फिस्टुला (भगंदर) रोग- जिसकी चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा विध एलोपैथी में भी नहीं है। उसके लिए यह संस्थान पूरे भारतवर्ष में प्रख्यात है। यहां पर कई बड़े अस्पतालों जैसे- एम्स, मेदांता, अपोलो, मैक्स, फोर्टिस आदि के मरीज (पीड़ित) ठीक होकर जाते हैं। पतंजलि हास्पिटल में आधुनिक पैथोलॉजी एवं रेडियोलॉजी सेवाओं की सुविधा उपलब्ध है। यहां पर शल्य क्रिया हेतु सभी मानकों का विशेष ध्यान रखकर सर्जरी की जाती है।



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