भारत के स्कूलों में कोरोना ने करा दी जबरदस्त जंग, स्कूल प्रबंधक और अभिभावक भिड़े




नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण के दौर में भारत में एक अजीब युद्ध चल रहा है। इस लड़ाई में अभिभावक और निजी स्कूल प्रबंधक आमने—सामने है। दोनों पक्ष अपने—अपने तर्क दे रहे है। निजी स्कूल व्यवस्थाओं के संचालन को सुचारू बनाने रखने के लिए टयूशन फीस की मांग कर रहे है। जबकि अभिभावक अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए फीस देने के कतई मूड में दिखाई नही पड़ रहे है। ऐसे में निजी स्कूलों की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है। निजी स्कूलों में कार्यरत कर्मचारियों के परिवारों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है। विडंबना देखिग कि संपन्न घरानों से ताल्लुक रखने वाले अभिभावक भी अपने बच्चे की फीस स्कूल में जमा कराने को तैयार नही है। ऐसे में निजी स्कूल और अभिभावकों के बीच रोजाना टकराव होने की खबरे सुनाई पड़ रही है। ​अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी की शिकायत जिला प्रशासन से कर रहा है। जिला प्रशासन स्कूलों को नोटिस जारी कर रहा है। इस लड़ाई का परिणाम क्या रहेगा ये किसी को पता नही। लेकिन जंग जारी है। अगर हरिद्वार की बात करें तो निजी स्कूल बेहद संकट के दौर से गुजर रहे है। यहां पर अभिभावक और निजी स्कूल प्रबंधकों में भिडंत जारी है।
कोरोना संक्रमण काल मार्च 2020 से भारत में शुरू हुआ। इसी बीच शिक्षण का नया सत्र अप्रैल माह से शुरू हो गया। मार्च महीना लॉक डाउन में बीत गया। उसके बाद निजी स्कूलों ने बच्चों को पढ़ाई से जोड़कर रखने के लिए आन लाइन एजुकेशन प्रारंभ कर दी। केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने निजी स्कूलों के लिए टयूशन फीस लेने की गाइड लाइन जारी कर दी। लेकिन इस गाइड लाइन में निजी स्कूलों का अभिभावकों पर दबाब ना देने का जिक्र किया गया। जिसके बाद से अभिभावकों ने निजी स्कूलों के खिलाफ आंखे तरेर ली। अभिभावकों ने बच्चों की फीस देने से पूरी तरह से मानो इंकार कर दिया। अभिभावकों को इंतजार है कि सरकार फीस में छूट कर देंगी। लेकिन सरकार ने स्कूल फीस माफ करने को लेकर कोई आदेश निर्देश जारी नही किया। जिसके बाद से अभिभावकों ने मौन साध लिया और स्कूलों की तरह से आंखे बंद कर ली। निजी स्कूलों ने अभिभावकों को फीस जमा कराने के मैसेज किए और फोन कॉल करने की तब अभिभावकों की नींद टूटी। नींद टूटते ही अभिभावकों ने निजी स्कूलों के खिलाफ शोषण करने की शिकायते दर्ज करानी शुरू कर दी। स्कूल परेशान और हैरान हो गए। उनके अपने ही अभिभावक​ अब दुश्मन पक्ष बन गए। जो स्कूलों को आंखे दिखाने लगे। स्कूल मुश्किल में फंस गया। स्कूल प्रबंधन फीस मांगने की गुजारिश करें तो मुसीबत और ना मांगे तो कर्मचारियों का वेतन देने का संकट बन गया। आखिरकार इस लड़ाई का अंत क्या होगा। ये किसी की समझ में नही आ रहा है।
सिस्टम को समझना जरूरी
यहां एक बात बतानी जरूरी है कि निजी स्कूल एक व्यवस्था है। जो बच्चों को शिक्षित करने का कार्य करती है। इस व्यवस्था को चलाने में बच्चों के अभिभावक फीस के तौर पर जो शुल्क जमा कराने है, उसी से पूरा सिस्टम चलता है। लेकिन यहां तो अभिभावकों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए है। हैरानी की बात ये है कि फीस जमा ना कराने में अधिकतर वो लोग शामिल है तो इनकम टैक्स विभाग को अच्छा टैक्स भरते है और ऐसे सरकारी कर्मचारी है, जिनको प्रतिमाह सरकार वेतन दे रही है। लेकिन फीस जमा ना करने में सभी शामिल है। समझने वाली बात ये भी कि​ कोरोना ने कारोबार चौपट किया है। व्यापारियों को नुकसान हो रहा है। लेकिन मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए निजी स्कूलों को अपना अंग मानते हुए फीस जमा करने का दायित्व तो सभी का बनता है। फिर ऐसे हालात उत्पन्न क्यो बनाए जा रहे है कि जंग लंबी चले और निजी स्कूल अपने कर्मचारियों को बेरोजगार कर दे।
हरिद्वार के अच्छे स्कूल
हालांकि संकट के इस दौर में भी हरिद्वार के डीपीएस रानीपुर, डीएवी पब्लिक स्कूल जगजीतपुर ,बिजडम ग्लोबल स्कूल, एचीवर्स होम, एसएम पब्लिक स्कूल, धूम सिंह मैमोरियल स्कूल, गुरू राम राय पब्लिक स्कूल, महर्षि विद्यापीठ समेत तमाम स्कूल आप लाइन शिक्षा प्रदान कर रहे है। इन स्कूलों के शिक्षक काफी मेहनत करके शिक्षण सामग्री को तैयार कर रहे है। शिक्षकों की इस मेहनत को नजर अंदाज नही करना चाहिए। अभिभावकों को भी धैर्य दिखाना चाहिए और स्कूलों से अपने रिश्ते को मजबूत करने का वक्त है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *