नवीन चौहान.
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का असर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दो दिन पहले कोरोना पॉजिटिव के नए केस कुछ कम हुए लेकिन सोमवार को एक बार फिर से रिकार्ड नए पाजिटिव केस मिले। नए कोरोना केस सामने आने से जहां अधिकारियों की चिंता और बढ़ गई वहीं जनता भी अब पूछ रही है कि आखिर इस मर्ज की दवा क्या है, कब इससे राहत मिलेगी, असमय जा रही लोगों की जान जानी कब बंद होंगी।
कोरोना से इस समय हालात बेहद गंभीर हैं। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रखा है। यह दूसरी लहर कोरोना की पहली लहर से काफी घाटक बनकर सामने आ रही है। इस बीमारी से इस बार युवा बड़ी संख्या में शिकार हो रहे हैं। कई ऐसे नौजवान इस बीमारी से असमय काल का ग्रास बन गए जिनके बारे में ऐसा होगा अभी सोचा भी नहीं जा सकता। अपनों को खोने का दुख पीड़ित परिवार सहन नहीं कर पा रहे हैं। कई घर ऐसे हैं जहां एक से अधिक लोगों की जान कोरोना ले चुका है। केंद्र और राज्य सरकार इस महामारी पर कंट्रोल करने का हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन उसके लिए यह चुनौती इतनी आसान नहीं है। 135 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में इतने कम समय में चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना बेहद चुनौती भरा कार्य है। इस बीमारी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को भी कोसा जा रहा है, उन्हें इस मोर्चे पर फेल बताया जा रहा है। लेकिन यहां सवाल ये है कि क्या इस आपदा के लिए केवल सरकारें ही जिम्मेदार हैं, हमारी कोई रोल इसमें नहीं है। देखा जाए तो इस आपदा के लिए हम भी जिम्मेदार हैं। देश की भारत सरका और प्रदेश सरकार लगातार कोरोना महामारी के आने पर लोगों को जागरूक कर रही है, उनसे अपील कर रही है कि मॉस्क का इस्तेमाल जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहे, थोड़ी थोड़ी देर में हाथ धोते रहे या सैनेटाइज करते रहे। लेकिन सोचिए क्या हमनें सरकार की बातों का पालन किया। अभी भी हम कितना कोविड गाइड लाइन का पालन कर रहे हैं। अभी भी ऐसे लोग हैं जो बिना वजह घर से बाहर घूम रहे हैं। यदि हम यह सब बंद कर दें तो कुछ दिन में ही यह महामारी कंट्रोल हो जाएगी। लेकिन हम स्वयं कुछ नहीं करेंगे, केवल सरकार को कोसते रहेंगे।
सरकार कोई भी हो अचानक आयी इस आपदा के लिए वह केवल प्रयास कर सकती है, किसी भी आपदा और विपत्ति का मुकाबला जनसहयोग से ही किया जा सकता है। पिछले साल जब कोरोना की दस्तक हुई तब केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया। तब भी सरकार को कोसा गया और कहा गया कि कोरोना कुछ नहीं है, लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है, रोजगार चले गए हैं, देश में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ गई है। इस बार जब केंद्र सरकार लॉकडाउन नहीं लगा रही तब भी उसे कोसा जा रहा है यह कहकर कि पहले तो कुछ ही केस थे कोरोना के और लॉकडाउन लगा दिया लेकिन इस बार इतने केस निकल रहे हैं और सरकार संपूर्ण लॉकडाउन नहीं लगा रही। हर सरकार के सामने यह समस्या रहती है, क्यों कि हम देश हित की बात करना भूल गए हैं, हम केवल अपने निजी स्वार्थ की बातों पर ही ध्यान देते हैं।
आपदा की इस घड़ी में अवसरवादी भी कम नहीं है। सरकार को कोसने वाले ही जान की कीमत लगा रहे हैं। आक्सीजन की मुंह मांगी कीमत वसूल रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए कोई आवाज नहीं उठ रही। क्या ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए, क्या ऐसे लोगों को कठोर सजा नहीं मिलनी चाहिए। विदेशों का उदाहरण देने वाल यह भूल जाते हैं कि यहां विपत्ति में दवा की भी कालाबाजारी हो रही है, राशन, फल सब्जी सभी के दाम बढ़ा दिये गए है। आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो इनके दाम बढ़ रहे हैं, दवा यदि बाजार में कम है तो क्या उसे मुंह मांगी कीमत पर बेचना सही है, यदि नहीं तो ऐसे लोगों का हम स्वंय ही बहिष्कार क्यों नहीं करते। ऐसे लोगों का यदि हम बहिष्कार करना शुरू कर दें उनसे सामान खरीदना बंद कर दें तो कुछ हद तक यह समस्या स्वयं हल हो जाएगी ओर कालाबाजारी करने वालों को भी सबक मिलेगा।
हरिद्वार जिले की बात करें तो यहां सरकार के दिशा निर्देशों के साथ जिलाधिकारी सी रविशंकर इस कोरोना महामारी को रोकने के लिए अपनी टीम के साथ दिनरात काम कर रहे हैं। अस्पताल की उपलब्धता हो या आक्सीजन की कमी को दूर करने का मामला सभी में वह सकारात्मक पहल कर रहे हैं। कुंभ आयोजन के बावजूद वह जिलें में संक्रमण के फैलाव को रोकने में काफी हद तक सफल हुए भी हैं। अभी भी वह लगातार प्रयास कर रहे हैं कि यह संक्रमण न फैले। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ भी लगातार मीटिंग कर अपडेट ले रहे हैं। सामाजिक और अन्य संस्थाओं का भी सहयोग वह ले रहे हैं। इसीलिए यही समय है जब हमें स्वयं अपने आपको जागरूक करते हुए कोरोना से लड़ाई में सरकार का साथ देना होगा। यदि हम जागरूकता के साथ केवल कोविड गाइड लाइन का पालन कर लेंगे तो भी यह न केवल बड़ा सहयोग होगा बल्कि संक्रमण पर काबू भी पाया जा सकेगा।