मुख्यमंत्री का आदेश बना मेला प्रशासन के गले की फांस, कोविड-19 का संकट




नवीन चौहान.
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कुम्भ मेलाधिकारी दीपक रावत को निर्देश दिए कि कुम्भ मेले में अखाड़ों को उसी प्रकार भूमि आवंटित की जाए, जिस प्रकार वर्ष 2010 में की गई थी। आखिरकार जब कुम्भ अपने चरम पर पहुंच गया है. दूसरे शाही स्नान के महज चार ही दिन बचे हैं. ऐसे वक्त में मुख्यमंत्री के इस फैसले को क्या समझा जाए. जबकि हरिद्वार में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है.

यात्रियों को रोकने के लिए बॉर्डर पर पुलिस बल तैनात किया गया है. तमाम मेला पुलिस फोर्स यात्रियों को रोकने में जूझ रही है. वहीं दूसरी ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत संतो को भूमि आवंटित करने की 2010 की पहल पर कार्य कर रहे हैं. मुख्यमंत्री का यह निर्णय किसी के गले नहीं उतर रहा है. साथ ही संतों के नाम पर घाटों की मांग के संबंध में मेलाधिकारी को तत्काल आख्या देने के निर्देश दिए हैं।

ऐसे में घाटों के नाम संतों के नाम पर रखने को लेकर भी विरोध होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। संतों के नाम पर घाटों के नाम रखने के लिए सभी संतों को एकमत करना भी प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सभी अखाड़े चाहेंगे कि घाटों के नाम उनके अखाड़े के संत के नाम पर हो। वहीं अभी जो नाम घाटों के हैं यदि उन्हें बदला जाएगा तो उसे लेकर भी विरोध होने की संभावना है। स्थानीय लोग नहीं चाहेंगे कि उनका नाम बदले, ऐसे में मुख्यमंत्री के आदेश स्थानीय मेला और जिला प्रशासन के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं।
अब देखना यही है कि प्रशासन मुख्यमंत्री के निर्देशों को किस तरह से पालन कराता है।



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