BJP मिशन 2022- नाम पुष्कर और काम त्रिवेंद्र, जनता से मांगे वोट




नवीन चौहान.
उत्तराखंड में भाजपा मिशन 2022 के लिए चुनावी मोड में आ चुकी है। प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार बीते साढ़े चार साल में तीन मुख्यमंत्री बदलने का नया कीर्तिमान बनाने का गौरव हासिल कर चुकी है।

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यूं तो सबसे बड़ा चेहरा वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का ही होगा। लेकिन अगर भाजपा अपने सरकार की उपलब्धियों को जनता को गिनाने की बात करेंगी तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के तमाम कार्यो को गिनायेगी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जनता से यह बात कह भी चुके है कि पूर्व दो मुख्यमंत्रियों अर्थात त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने जिन विकास योजनाओं को आगे बढ़ाया वह पूरा करने का कार्य करेंगे। पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन देंगे। लेकिन जनता की अदालत में एक सवाल जस का तस है कि त्रिवेंद्र रावत को बदलने की नौबत क्यो आई।

साल 2017 के विधानसभा चुनाव की जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में उत्तराखंड की जनता से डबल इंजन की सरकार देने की अपील की थी। मोदी ने कहा कि केंद्र में भाजपा सरकार है और प्रदेश में भाजपा सरकार होगी तो डबल इंजन तेज गति से विकास कार्यो को करने में सक्षम होगा। मोदी की बातों पर जनता ने भरोसा किया और उत्तराखंड की जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से 57 पर भाजपा ने जीत हासिल की।

भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने डबल इंजन की उत्तराखंड सरकार की कमान संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े त्रिवेंद्र सिंह रावत को दी। ​साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जीरो टॉलरेंस के विजन के साथ कार्य शुरू कर दिया। करीब चार साल त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चली। लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि त्रिवेंद्र सिंह रावत का मंत्रीमंडल तक पूरा नही हो पाया। तीन मंत्री पद खाली रहे।

तीन मंत्री पदों के खाली रहने के पीछे हांलाकि कई वजह है। राजनैतिक विशेषज्ञों की माने तो विधायकों की नाराजगी को थामने के लिए ही भाजपा हाईकमान ने तीनों मंत्री पदों को भरने के लिए हरी झंडी नही दी। सूत्रों की माने तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते चार साल में हाईकमान से तीन मंत्री पदों को भरने को लेकर चर्चा भी की। लेकिन ग्रीन सिग्नल नही मिल पाया।

मंत्री नही बन पाने से पार्टी के भीतर ही विधायकों की नाराजगी त्रिवेंद्र सिंह रावत से लगातार बढ़ती जा रही थी। मंत्री बनने से अछूते विधायकों की अधूरी हसरते लावा बनकर त्रिवेंद्र पर फूटने को तैयार थी।

वही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात करें तो वह प्रदेश में विकास कार्यो को गति प्रदान करने में लगे थे। काबिल अफसरों को उनकी कार्यशैली के अनुरूप जिम्मेदारी सौंपकर उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में लगे थे। माफियाओं पर अंकुश लगाने और स्थानांतरण की दलाली को काफी हद तक रोक पाने में उनको सफलता मिल रही थी। सचिवालय में दलालों पर नजर रखी जा रही थी। लेकिन त्रिवेंद्र के कुछ करीबी ही उनके साथ विश्वासघात करने में लगे थे। त्रिवेंद्र की छवि के विपरीत जाकर अपनी जेब भरने में लगे थे।

समाजसेवी श्रुति लखेड़ा बताती है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद तो ईमानदारी से कार्य कर रहे थे। लेकिन उनके सलाहकार और इर्द गिर्द मंडराने वाले लोग उनकी छवि को धूमिल करने का कार्य कर रहे थे। बीते चार सालों में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने असीमित विकास कार्य किए है। जिनका सीधा लाभ प्रदेश की गरीब जनता को मिल रहा है और मिलता रहेगा। देवास्थानम बोर्ड का गठन भी प्रदेश की अर्थव्यवथा को सुदृढ़ करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। इस बोर्ड से मंदिरों के पुजारियों के हक हकूक प्रभावित नही हो रहे है। बस समझने की जरूरत है। अब देवास्थानम बोर्ड का मुददा वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए एक चुनौती बन गया है। पुजारियों को खुश रखना है या प्रदेश के हित को सर्वोपरि रखना है।

बहराल, मुख्यमंत्री पद से त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई अपने ही भाजपा विधायकों की नाराजगी के कारण हो गई। अगले मुख्यमंत्री के तौर पर सांसद तीरथ सिंह रावत को लाया गया। यह अभिनव प्रयोग भाजपा को भारी गुजरा। तीरथ सिंह रावत के फटी जींस के बयान के बाद से भाजपा को गले-गले आ गई।

तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुछ फैसलों को बदलने में सुखियां जरूर बटोरी। लेकिन उपलब्धि के नाम पर गिनाने के लिए कुछ नही है। कुंभ आयोजन को लेकर भाजपा की किरकिरी जरूर हुई। वही कोविड जांच में फर्जीबाड़ा और कोरोना की दूसरी लहर में प्रभावित जनता की नाराजगी भाजपा से जरूर हुई।

भाजपा हाईकमान त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री पद से हटाने और तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से पशोपेश में आ गया। तीरथ सिंह रावत को चेहरा रखकर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जाने का रिस्क भाजपा हाईकमान नही लेना चाहती थी। ऐसे में भाजपा हाईकमान ने तीरथ सिंह रावत को बदलने का फैसला किया और उप चुनाव नही हो पाने को ढाल बनाया।

तमाम गहमागहरी और भाजपा विधायकों के आंतरिक कलह को शांत करते हुए भाजपा हाईकमान ने खटीमा के 45 वर्षीय युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। युवा मुख्यमंत्री और कुमाऊं क्षेत्र में भाजपा का यह प्रयोग अनूठा है। पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद से पूर्व मुख्यमंत्रियों के विकास कार्यो को लेकर आगे बढ़ने की बात कही।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा के मुख्यमंत्री बदलने के प्रयोग विधानसभा चुनाव 2022 में कितने सफल होंगे। जबकि चुनाव में चेहरा पुष्कर सिंह धामी का होगा और काम त्रिवेंद्र सिंह रावत के होंगे।

इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता का विश्वास जीत पाने में किस प्रकार कामयाब होेंगे। उत्तराखंड की आम जनता की बात करें तो मुख्यमंत्री बदलने से गरीब जनता को कोई फर्क नही पड़ता है। आम गरीब जनता तो दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करती है। हरिद्वार के एक बुजुर्ग गोपाल ने बताया कि सरकार जनता के लिए संवेदनशील नही होती है। राजनीति सत्ता हासिल करने के लिए की जाती है। नेता राजयोग का आनंद लेते है और गरीब जनता तमाशबीन है।

फिलहाल तो भाजपा के लिए साल 2022 का विधानसभा चुनाव कठिन चुनौती लेकर आने वाला है। कांग्रेस ने दंभ भर लिया है और आम आदमी पार्टी ने मुफ्तखोरी का राग अलापना शुरू कर दिया है। आप के वायदे 300 यूनिट बिजली पर उत्तराखंड की जनता कितना भरोसा करती है, यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा। लेकिन चुनाव रोमांचक होगा।



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