त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री पद से हटाना भाजपा हाईकमान की बड़ी भूल, अब दिखेगा असर





नवीन चौहान
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से हटाना भाजपा हाईकमान की बड़ी भूल साबित होता दिखाई पड़ रहा है। राजनैतिक पंडितों के अनुभव को जाने तो भाजपा हाईकमान ने एक ईमानदार मुख्यमंत्री को कांग्रेसी विचारधारा और मौकापस्त विधायकों के दबाब में बदलकर अपनी ही पार्टी से आगामी सत्ता दूर कर दी। अगर हरक की प्रेशर पॉलटिक्स को भाजपा हाईकमान समझ जाते और उसी वक्त हरक की भाजपा से विदाई करते तो पार्टी विकास कार्यो के दम पर एक बार फिर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने की दिशा में बढ़ रही होती। लेकिन अब भाजपा की डगर सत्ता तक मुश्किल दिखाई दे रही है। वर्तमान स्थिति को देंखे तो कांग्रेस जहां 35 से 40 सीटों के साथ सरकार बनाने की लीड ले रही है और भाजपा सत्ता से दूर हो रही है। हालांकि टिकट वितरण के बाद भाजपा और कांग्रेस में एक बार भगदड़ होनी तय है।
उत्तराखंड की सियासत दिन प्रतिदिन करवटे बदल रही है। विधानसभा चुनाव रोमांचक मोड़ में आ रहा है। भाजपा और कांग्रेस टिकट वितरण से पूर्व प्रत्याशियों के नामों पर विचार मंथन कर रही है। लेकिन इससे पूर्व ही भाजपा के कददावर नेता और केबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने सर्दी के मौसम में तापमान बढ़ा रखा है। भाजपा हाईकमान के लिए टिकट वितरण की रणनीति में सस्पेंस बरकरार रख दिया है। हरक सिंह रावत अपने लिए सेफ जोन में है। उन्होंने साबित ​कर​ दिया कि वह संगठन से अलग अपनी सोच रखते है। अपने राजनैतिक भविष्य के मददेनजर ही पार्टी में रहते है।

लेकिन हरक की राजनीति को समझने के लिए पांच साल पीछे त्रिवेंद्र सरकार को समझना होगा। जब प्रचंड बहुमत की सरकार में त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री बनाया गया तो हरक की हनक तभी से दिखनी शुरू हो गई थी। हरक सिंह रावत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के लिए मुश्किले खड़ी करनी शुरू कर दी थी। लेकिन एक दूरदर्शी सोच और ईमानदार व्यक्तित्व के धनी त्रिवेंद्र ने पहली ही बार में हरक पर लगाम लगा दी। हरक की तमाम संदेहजनक फाइलों पर धूल जमा दी। मंसूबे पूरे ना होते देख हरक ने त्रिवेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दी और मंत्री और विधायकों के व्यक्तिगत हितों को दरकिनार कर दिया।
हरक सिंह रावत सार्वजनिक मंचों पर त्रिवेंद्र के खिलाफ मुखर हो गए और बयानबाजी करने लगे। त्रिवेंद्र ने हरक सिंह रावत पर लगाम कस दी। हरक छटपटाने लगे और त्रिवेंद्र को हटाने की मुहिम में जुट गए। तीन रिक्त पदों पर मंत्री बनाने की आस में कई भाजपा के विधायक भी हरक की मुहिम में शामिल हो गए।
भाजपा हाईकमान की सबसे बड़ी भूल रही कि उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत के विकास कार्यो की समीक्षा नही की। बस हरक के दबाब में आए और त्रिवेंद्र को बदलने का निर्णय सुना दिया। त्रिवेंद्र ने तो कुर्सी छोड़ दी और संगठन की सेवा में जुट गए। वही हरक सिंह रावत अपने मंसूबों को पूरा करने की जुगत में लग गए। चुनाव का वक्त आया तो हरक की हनक बाहर आ गए और अब पार्टी को फिर दबाब में लेने का प्रयास किया। बहू अनुकृति के लिए टिकट की मांग कर दी। भाजपा असहज हो गई। जिसके चलते भाजपा के सभी समीकरण बिगड़ गए।



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