बैक डोर भर्ती: मैं संस्तुति करने में गले-गले तक डूबा हूं- हरीश रावत




नवीन चौहान.
विधानसभा में बैक डोर भर्ती प्रकरण को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने एक और पोस्ट सोशल मीडिया पर लिखी है। इस पोस्ट को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा है कि बैक डोर प्रकरण में यह उनकी अंतिम पोस्ट है।

बैक डोर भर्ती प्रकरण ने सोशल मीडिया पर लिखी ये पोस्ट विधानसभा बैकडोर भर्ती प्रकरण में मेरा यह अंतिम पोस्ट/ट्वीट है। मैंने अपने पूर्ववर्ती ट्वीट्स में नियुक्ति कर्ता विधानसभा अध्यक्षों और राजनेता जिन्होंने नियुक्तियां करवाई हैं उन पर कुछ टिप्पणियां की। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम नौकरी आदि में संस्तुति नहीं करते हैं। मैं संस्तुति करने में गले-गले तक डूबा हुआ हूं और आनंद महसूस करता हूं।

मैं ज्यों ही सुनता हूं कि साहब एक टेलीफोन तो कर दीजिए। मेरे अंदर का सामाजिक कार्यकर्ता हरीश रावत, फौरन टेलीफोन उठाकर कुछ बचते-बचाते संस्तुति कर ही देता हूं। कभी-कभी तो मैं इतनी बड़ी गलती कर देता हूं कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति को भी टेलीफोन कर देता हूं। चाहे वह टेलीफोन उपनल के माध्यम से मैसेंजर के पद पर लगाने का ही क्यों न हो!

उत्तराखंड में नौकरी, भगवान मिलने के बराबर मानी जाती है तो यहां के सार्वजनिक जीवन का व्यक्ति सिफारिश करने से और सिफारिश मानने से कैसे इंकार कर सकता है! मैं सभी स्पीकर महोदयान और संस्तुति करने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों की विडंबना को समझता हूं। मगर गलत तो गलत है। सन् 2001 से हम गलती करते आए हैं। उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी को चाहिए था कि ऐसी सभी नियुक्तियों को चिन्हित कर उन पर क्या कार्रवाई की जाए, इसका आदेश माननीय विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जी से लेते।

राज्य के लोगों को यह जानने का पूरा हक है कि हम में से किन लोगों ने नियुक्तियों के मामले में नैतिक आधार पर ही सही गलती की है। इस सारे जांच के निष्कर्ष में उस गरीब निरीह उत्तराखंडी का गला तो कट गया, जिसके लिए नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य है। हम लोगों ने जिन्होंने अपने अधिकारों व पद का विवेक सम्मत उपयोग नहीं किया, कमेटी उन चेहरों को सामने नहीं लाई।

हमने स्पीकर दर स्पीकर, मुख्यमंत्री दर मुख्यमंत्री गलती की। हम नौकरी दिलवाना और नौकरी देना, संविधान सम्मत अधिकार मान बैठे। जबकि ऐसा है नहीं। मैं माननीय स्पीकर व मुख्यमंत्री जी की परिस्थिति को समझता हूं। संतोषजनक समाधान के अभाव में यह विवाद गूंजता रहेगा। मैं अच्छा, तू बुरा होता रहेगा और यह सत्य दब जाएगा कि प्रक्रियात्मक नियुक्तियां और दोषपूर्ण नियुक्तियां, कहां-कहां हुई हैं और किसने की हैं? क्या धन का आदान-प्रदान हुआ है? क्या जाली प्रमाण पत्र लगाए गए हैं? क्या बिना प्रक्रियात्मक अनुमोदन के माननीय स्पीकर साहिबान ने अपने विवेक का निर्मम तरीके से दुरुपयोग कर दिया?



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