ऋतु नौटियाल
हरिद्वार में सफेद सोने की चोरी को रोकने में प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली संदेह के घेरे में है। पुलिस की आंखों के सामने सैंकड़ों बुग्गियां और ट्रैक्टर ट्राली गंगा से रेत और पत्थरों की चोरी कर रहे है। लेकिन पुलिस इस चोरी को रोकने के प्रति संजीदा नही है। वही राजस्व प्रशासन के निचले स्तर के अधिकारियों की माफियाओं से सांठ—गांठ भी माफियाओं के मंसूबे को परवान चढ़ा रही है। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस को कुर्सी के प्रति वफादारी का फर्ज निभाते हुए राज्यहित में चोरी को रोकना बहुत जरूरी है।
उत्तराखंड प्रदेश करीब 50 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबा है। राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नही है। जबकि उत्तराखंड के कोष में इजाफा करने के लिए खनन का अहम रोल है। वैध खनन की रायल्टी से प्रदेश के खजाने में बढोत्तरी होती है। जिससे सरकारी कर्मचारियों के वेतन व तमाम खर्चो किए जाते है। ऐसे में खनन की निगेहबानी करने वालों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। अगर हरिद्वार की बात करें तो यहां राजस्वकर्मियों की कार्यशैली हमेशा से संदेह के घेरे में रही है। खनन सामग्री की सुरक्षा करने वाले ही अवैध खनन करने वाले माफियाओं के संरक्षक बने हुए है। ग्रामीणों की तमाम अवैध खनन की सूचनाओं पर भी उनके कदम नहीं बढ़ते है। जिससे सूचनातंत्र का विश्वास कमजोर पड़ता है। ऐसे में राजस्वकर्मियों और पुलिस को अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।