—चार कांस्टेबलों के आत्महत्या के बाद दिलबर के प्रयास ने भी पुलिस महकमे को झकझोरा
नवीन चौहान
उत्तराखंड पुलिस के कांस्टेबल विभागीय डयूटी के लिए जितने सजग और कर्तव्यनिष्ठ दिखाई देते है उतने ही मानसिक तौर पर कमजोर होते जा रहे है। खाकी के अनुशासन में पूरी तरह जकड़े हुए कांस्टेबल अपनी मनोदशा किसी के साथ शेयर नही करते है। बतौर कांस्टेबल पुलिस डयूटी के अलावा वह कोई पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी सही तरीके से नही कर पाते है। स्कूल की पैरेंट्स टीचर मीटिंग हो या मां बाप की सेवा इस कसौटी पर भी कांस्टेबल खरे नही उतर पाते है। वही दूसरी ओर अधिकारियों से मिलने वाली फटकार भी उनका मनोबल तोड़ती है। ऐसी ही तमाम सामान्य बातें जो एक मजबूत इंसान को भी कमजोर करती है। मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक खाकी वदी में दिखने वाला एक कांस्टेबल एक इंसान भी है। जिसके अंदर दिल धड़कता है। ऐसे में कांस्टेबलों को अपने विभागीय अधिकारियों का साथ और विश्वास मिले जो उनके दुख—दर्द को समझ सकें तो शायद आत्मघाती कदमों और उनके प्रयासों पर रोक जरूर लग सकती है।
उत्तराखंड गठन के साथ ही साल 2002 में उत्तराखंड पुलिस का गठन किया गया। उत्तराखंड पुलिस का स्लोगन भी मित्रता,सेवा और सुरक्षा रखा गया। उत्तराखंड के युवाओं ने पूरे जोश और उत्साह के साथ वर्दी पहनी और कानून व्यवस्था के दायित्व को निभाने की शपथ ली। उत्तराखंड के कांस्टेबलों ने अनुशासन में रहकर इस शपथ को पूरा किया। कांस्टेबलों ने कई मोर्चो पर अपनी जान की बाजी लगाकर बदमाशों को दबोचा और कीर्तिमान स्थापित किया। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के मामले में उत्तराखंड पुलिस का कोई सानी नही। उत्तराखंड पुलिस के कांस्टेबलों को राष्ट्रीय स्तर पर कई बहादुरी के पुरस्कार भी मिले। लेकिन इन 18 सालों में उत्तराखंड पुलिस अनुभवी हुई तो इसके साथ जिम्मेदारियों के बोझ तले दबती चली गई। कांस्टेबलों को छुट्टी ना मिलने की बात तो कई बार सामने आई। लेकिन उनके वेतन विसंगति को लेकर भी मिशन आक्रोश तक की चिंगारी फूटी। लेकिन अनुशासित महकमे में कांस्टेबलों को समझा बुझाकर शांत करा दिया गया। लेकिन यहां बात को उनके मनोबल की हो रही है तो तमाम ऐसी बातें सामान्य कार्य दिवसों में घटित होती है। जिससे उनके आत्मसम्मान को ठेंस पहुंचती है। कांस्टेबल अपनी पारिवारिक विवशता के चलते या नौकरी की मजबूरी इन तमाम बातों को भूलने की कोशिश करता है। लेकिन कुछ मानसिक तौर पर कमजोर कांस्टेबल इस बात को दिल से लगा लेते है। ऐसे में वह आत्मघाती कदम की ओर कदम बढ़ाते है। हालांकि दिलबर ने ये कदम क्यो बढ़ाया यह तो अधिकारियों की पूछताछ के बाद ही साफ हो पायेंगा। लेकिन थानों और कोतवाली व ट्रैफिक डयूटी कर रहे कांस्टेबलों को निर्देशों के साथ उनके आत्मसम्मान की गरिमा को बरकरार रखा जाए तो कांस्टेबल दुगनी ताकत के साथ अपने कर्तव्य का पालन करेंगा। पुलिस अधिकारियों ने मिलने वाला उत्साहबर्धन किसी भी कांस्टेबल की मानसिक थकान को दूर करने के लिए काफी होता है।
चार कांस्टेबलों की मौत पर आज भी सस्पेंस
मौत को गले लगाने वाले उत्तराखंड पुलिस के चारों कांस्टेबलों विपिन सिंह भंडारी, जगदीश सिंह, हरीश और चंद्रवीर सिंह की मौत आज भी रहस्य बनी हुई है। साल 2012 बैच के ये सभी जवान फिलहाल तो इस दुनिया में नही है। लेकिन उनकी मौत को लेकर चर्चाएं आज भी होती है।