–उत्तराखंड के युवाओं के सपनों को पूरा नहीं कर पाई अब तक की सरकारें
नवीन चौहान,
हरिद्वार। उत्तराखंड की सरकार में युवाओं के सपने पूरा करने का विजन दिखाई नहीं पड़ता है। केंद्र सरकार की बैसाखियों के बदौलत उत्तराखंड राज्य चल रहा है। 17 सालों में राज्य की सरकारों ने बेरोजगार नौजवानों के सपनों को पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया। राज्य की सरकारों ने जो भी निर्णय लिये वो अपनी पार्टी के राजनैतिक भविष्य को देखकर लिये। यही कारण है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिये उत्तराखंड के युवा पलायन करने को विवश है। पहाड़ के गांव के गांव खाली हो रहे हैं। सरकार के पास इन युवाओं को रोकने का कोई तरीका नहीं है। उत्तराखंड के नेताओं का पलायन एक राजनैतिक गीत बन कर रह गया है। जो हर चुनाव में नेताओं के मुख से सुनाई देंगा।
उत्तराखंड के आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान कर इस राज्य की स्थापना की थीं। 9 नबंवर साल 2000 में राज्य की स्थापना हुई। जब राज्य बना तो उत्तराखंड वासियों ने खुली आंखों से भविष्य के सुनहरे सपने देखने शुरू कर दिये। राज्य के लोगों को लगा कि उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां विकास की बयार बहने लगेंगी। युवाओं को रोजगार मिल जायेगा। घरों में खुशहाली होगी। 13 जनपदों के इस छोटे से राज्य में भाईचारा होगा प्रेम होगा और सभी उत्तराखंडी खुश होंगे। लेकिन राज्य की कमान जिनके हाथों में थी उनकी आंखों में तो सत्ता सुख के सपने हिलोरे मार रहे है। सत्तासीन नेताओं को मुख्यमंत्री और मंत्री बनने की इच्छा बलबती हो रही थी। विपक्षी नेताओं को कुर्सी पाने की हसरतें सता रही थी। सत्ता की कुर्सी पाने महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में उत्तराखंड के नेताओं ने इन तमाम नेताओं ने उत्तराखंडवासियों के युवाओं के सपनों की बलि ले ली। उत्तराखंड के नेता सत्ता की कुर्सी की जंग में बिजी हो गये। यहां के बेरोजगार युवा अपने सपनों को चकनाचूर होते देखते रहे। साल दर साल यही सिलसिला चलता रहा। 17 साल का उत्तराखंड बालिग हो गया। लेकिन युवाओं के सपने सपने रह गये। पहाड़ के युवाओं को ना तो रोजगार मिला ना ही पहाड़ पर खुशियां आई। युवाओं ने अपने सपनों को पूरा करने के लिये दूसरे राज्यों की ओर रूख करना शुरू कर दिया। नतीजा ये निकला कि पहाड से गांव के गांव खाली हो गये। पर इन नेताओं की नींद नहीं टूटी। इन नेताओं ने आखिरकार पलायन को एक बड़ी समस्या मान लिया और इसे अपने चुनावी मुद्दे में शामिल कर लिया। राज्य में होने वाले चुनावों में नेता पलायन का गीत गाते सुनाई पड़ जाते है। लेकिन नेताओं की विकास करने की सोच दिखाई नहीं पड़ी। अब राज्य की आर्थिक आर्थिक हालात इतने खराब हो चुके है कि केंद्र सरकार से लगातार सहायता भेजी जाती हैं। जिसकी बदौलत से राज्य चल रहा है। ऐसी स्थिति में पलायन गीत कभी बंद नहीं होगा। ये तो बस राजनैतिक नेताओं का पसंदीदा गीत है।