नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण के बाद लॉक डाउन के चलते अगर सबसे ज्यादा प्रभाव किसी प्रतिष्ठान पर पड़ा है तो वह निजी स्कूल है। निजी स्कूलों का वजूद पूरी तरह से खतरे की जद में आ गया है उनकी अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। निजी स्कूलों के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैंसे नही है। अभिभावक मानवीय संवेदनाओं को छोड़कर निजी स्कूलों से दो—दो हाथ करने में मूड में आ गए है। अभिभावकों ने अपनी आंखे स्कूलों से तरेर ली है। अभिभावकों के बाद सरकार और अब हाईकोर्ट का आदेश निजी स्कूलों के आने वाले मुश्किल दिनों की हकीकत को बयां करने का इशारा कर रहा है। कुछ स्कूल प्रबंधकों ने अपने स्कूलों को बंद करने तक का मन बनाना शुरू कर दिया है।
निजी स्कूल कई प्रकार से संचालित होते है। कुछ स्कूल एकल स्वामित्व के होते है तो कुछ संस्था और ट्रस्ट संचालित करती है। एकल स्वामित्व के स्कूलों का निर्णय मालिक स्वयं करते है। जबकि मैनेजमेंट के स्कूलों का निर्णय प्रबंध कमेटियां करती है। प्रबंध कमेटियों के स्कूलों में सरकारी मानको की कसौटी पर खरे उतरे है और तमाम नियमों मानकों के अनुरूप ही उनका संचालन होता है। मैनेजमेंट के स्कूलों में कार्य करने वाले तमाम निजी स्कूलों में कार्य करने वाले कर्मचारियों का वेतन केंद्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार ही होता है। जबकि एकल स्वामित्व के स्कूलों में मालिक की मनमानियां चलती है। निजी मालिकों के स्कूलों पर किसी का कोई अंकुश नही होता। ये सरकार के मानकों की कसौटी पर भी काफी हद तक खरे नही उतरते। इनके यहां कर्मचारियों को सरकार के नियमों के अनुसार वेतन तक नही मिलता। हालांकि नौकरी जाने के डर से कर्मचारी भी मुंह खोलने से डरते है। लेकिन यहां बात को आपदा संकट में अर्थव्यवस्था की हो रही है। फिलहाल निजी स्कूलों पर संकट के बादल मंडरा रहे है। आने वाले दिनों में इन संस्थाओं में कार्य करने वाले कर्मचारियों को वेतन मिलेगा या नही इसकी कोई संभावना बनती दिखाई नही दे रही है। स्कूलों के पास कोई फंड नही है। सत्र 2020—21 के चलने की कोई स्थिति बनती दिखाई नही दे रही है। ऐसे में निजी स्कूलों के वजूद को खतरा उत्पन्न होना स्वाभाविक है। अगर एक दो माह ये ही हालात बने रहे तो तय जानिए निजी स्कूलों में कार्य करने वाले कर्मचारियों के परिवार भुखमरी के दौर से गुजर रहे होंगे। मामला गंभीर है और विचारणीय है। देश लॉक डाउन—4 की ओर अग्रसरित हो रहा है। इस लॉक डाउन के बाद देश के हालत कैसे होंगे ये समझ पाना अभी मुश्किल है। लेकिन लोगों की माली हालत खराब होगी ये तो तय है।