निरोगी रहने के लिए शरीर के पंच तत्वों का संतुलित रहना जरूरी- डॉ वेदप्रकाश




संजीव शर्मा
आयुर्वेद का चिकित्सा में अलग और महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि सभी अपनी अपनी चिकित्सा पद्धतियों को सर्वोत्तम बताते हैं। मेरठ जिले की पल्ल्वपुरम कालोनी में रहने वाले मेरठ कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक डॉ वेदप्रकाश का कहना है कि सभी चिकित्सा पद्धति परिस्थितियों के अनुसार सर्वोत्तम है, लेकिन कोई भी पद्धति संपूर्ण नहीं है। आज विभिन्न रोगों के लिए आयुर्वेद को अपनाया जा रहा है। इसी तरह प्राकृतिक चिकित्सा का भी अपना अलग महत्वपूर्ण स्थान है। प्राकृतिक चिकित्सा शरीर को शोधन करने की चिकित्सा पद्धति है। शरीर शुद्ध रहेगा तो रोग स्वयं ही दूर रहेंगे।

प्राकृति​क चिकित्सा में दवा का इस्तेमाल नहीं
डॉ वेदप्रकाश ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा में दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता, यह केवल एक नियम और परिवर्तन है। ताकि शरीर शुद्ध हो जाए, प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर की शुद्धि पर जोर दिया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा पांच तत्वों पर आ​धारित चिकित्सा पद्धति है। इसमें हवा, पृथ्वी, जल, आकाश और अग्नि का इस्तेमाल किया जाता है। जिस तरह से प्रकृति में संतुलन बिगड़ता है तो उसमें परिवर्तन आ जाता है, ठीक इसी प्रकार जब हमारे शरीर का संतुलन बिगड़ता है तो शरीर में भी परिवर्तन आता है जो बीमारियों के रूप में हमें दिखायी देता है। यही कारण है प्रकृति में यदि संतुलन बिगड़ता है तो इसका परिर्वतन प्रकृति और मनुष्य दोनों में देखने को मिलता है। इसीलिए हमारे ऋषि मुनि और पूर्वजों ने कहा है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन।

शरीर में पंच तत्व का संतुलन बिगड़ने पर दिखते हैं रोग
डॉ वेदप्रकाश ने बताया कि यदि शरीर में पृथ्वी तत्व बढ़ता है तो वह मोटापे के रूप में दिखायी देता है, पृथ्वी तत्व घटता है तो शरीर में दुर्बलता दिखायी देती है। वायु तत्व शरीर में बढ़ने पर जोड़ों में दर्द की समस्या सामने आती है, वायु तत्व कम होने पर शरीर के जोड़ ठीक से काम नहीं करते। शरीर में जल तत्व बढ़ता है तो वह सूजन के रूप में दिखायी देता है और यदि जल तत्व घटता है तो गुर्दे खराब होने जैसे रोग सामने आते हैं। अग्नि तत्व जिसे जठरा अग्नि भी कहते हैं बढ़ने पर शरीर में एसिड बढ़ता है, इसके बढ़ने से शरीर का तापमान बढ़ता है जिससे मनुष्य बीमार होता है, कम होने पर पाचन क्रिया प्रभावित होती है। ब्लडप्रेशर कम होने की बीमारी सामने आती है। इसी तरह शरीर में आकाशीय तत्व का महत्व है। कम या अधिक होने पर यह शरीर में रोग को जन्म देता है। यदि शरीर में पांचों तत्व संतुलित है तो मनुष्य निरोगी रहेगा।

निरोगी रहने के लिए प्रकृति का संतुलन जरूरी
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में भी उल्लेख है कि ऋतु, आयु और बल के अनुसार यदि हम भोजन करेंगे तो निरोगी रहेंगे। विपरीत करने पर रोगी हो जाएंगे। इसीलिए आयर्वुेद में भी प्रकृति को संरक्षित करने पर जोर दिया गया है। हम जितना प्रकृति को संरक्षित करेंगे प्रकृति हमें उतना ही स्वस्थ्य रखेगी। यदि प्रकृति में संतुलन बिगड़ता है तो उसका सीधा प्रभाव मानव के शारीरिक संतुलन पर दिखायी देता है। इसीलिए हमें निरोगी रहने के लिए अपनी भारतीय संस्कृति और भोजन को अपाने पर अधिक जोर देना होगा। क्यों​कि आज के समय में विश्व के अन्य देश भी भारतीय संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे हैं।



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