वोटरों को रिझाने में प्रत्याशियों ने डाले कौन-कौन से डोरे




नवीन चौहान
लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों ने मतदाताओं को रिझाने में खूब डोरे डाले। प्रत्याशी पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार में उतरे और अंतिम दिन तक जुटे हुए हैं। प्रचार के दौरान भाजपा ने विकास कार्य को गिनाकर अपने पक्ष में वोट देने की अपील की तो कांग्रेस प्रत्याशी ने खुद को स्थानीय होने की बात कहकर वोट मांगे। बसपा प्रत्याशी जातिय समीकरणों के आधार पर अपने पक्ष में मतदान कराने की अपील करते नजर आए। निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अपने-अपने तरीके से चुनाव प्रचार किया। कुल मिलाकर कहा जाए तो जनता की समस्या जस की तस नजर आईं। लेकिन प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार भिन्न-भिन्न मुद्दों पर रहा। जनता ने किस प्रत्याशी को स्वीकार्यता दी इस बात का खुलासा तो 23 मई को मतगणना के बाद ही हो पायेगा। लेकिन प्रत्याशियों ने वोटरों को रिझाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है।
हरिद्वार लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और बसपा के बीच नजर आ रहा है। जबकि कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। नामांकन के बाद चुनाव प्रचार में जुटे प्रत्याशियों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए खूब डोरे डाले। भाजपा प्रत्याशी डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की बात करें तो उन्होंने मोदी सरकार की पांच साल की उपलब्धियों को गिनाया। पांच साल के दौरान हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों को जनता को बताया। रिंग रोड़, हरकी पैड़ी का सौंदर्यीकरण और ग्रामीण इलाकों में कराए गए सड़कों के कार्यांे को अपनी उपलब्धि बताकर वोट मांगे। कांग्रेस प्रत्याशी अंबरीश कुमार की बात करें तो उन्होंने प्रमुख रूप से खुद ही स्थानीय होने को सबसे ज्यादा हवा दी। इसी के साथ हरिद्वार के लोगों का सर्वाधिक हितैषी होने का दावा किया। बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का भरोसा देने की बात चुनाव प्रचार के दौरान कही। बसपा व सपा गठबंधन के प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी खुद को शिक्षित होने की बात कहते हुए क्षेत्र में शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रचार करते दिखाई दिए। उन्होंने एक वर्ग विशेष को ही अपना कैडर वोट मानते हुए चुनाव प्रचार किया। तथा दूसरे के घरों में सेंधमारी पर फोकस किया। निर्दलीय प्रत्याशी मनीष वर्मा की बात करें तो उनका पूरे चुनाव में निशंक की आलोचना करना ही एक मुख्य मुद्दा रहा। वह निशंक के खिलाफ कोर्ट में याचिका डालकर ही सुर्खियों में बने रहे। वही अन्य दूसरे निर्दलीय अपने-अपने सीमित क्षेत्रों में ही चुनाव प्रचार करते नजर आए। लोकसभा का चुनावी क्षेत्र बड़ा होने के चलते निर्दलीय प्रत्याशी मीडिया की पहुंच से भी दूर रहे और मीडिया से भी दूरी बनाकर रखी। कुछ निर्दलीय के नाम तो खुद मीडिया तक सरकारी सूचना विभाग से मिले पर प्रत्याशियों के चेहरे मीडिया नहीं देख पाई। इससे खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और बसपा चुनावी रेस में शामिल रही लेकिन निर्दलीय कहीं पिछडे़ नजर आए।



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