त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति थे स्वामी चेतनानंद महाराजः राजराजेश्वराश्रम




नवीन चौहान, हरिद्वार। संतों का जीवन परोपकार के लिए होता है। अपने परोपकार व जन कल्याण के किए कार्यों के कारण ही संतों का जीवन सदैव के लिए अमर हो जाता है। उक्त उद्गार शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम महाराज ने श्री चेतनानंदगिरि आश्रम में स्वामी चेतनानंद गिरि महाराज के 48वें निर्वाण महोत्सव पर सोमवार को श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
राजराजेश्वराश्रम महाराज ने कहा कि स्वामी चेतनानंद गिरि महाराज त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति थे। उनके बताए मार्ग का अनुसरण उनके शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद गिरि महाराज करते चले आ रहे हैं। कहा कि गुरु की परम्परा व उनके बताए मार्ग का अनुसरण करने वाला की सुयोग्य शिष्य होता है। आश्रम के महंत स्वामी विष्णुदेवानंद महाराज इस परम्परा का भलीभांति निर्वहन ही नहीं कर रहे हैं बल्कि आश्रम की उतरोत्तर वृद्धि भी कर रहे हैं। म.म. स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि संत शरीर त्यागने के बाद भी सूक्ष्म रूप में अपने भक्तांे के बीच मौजूद रहते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं। यही कारण है कि ब्रह्मलीन होने के वर्षों बाद भी उनके निर्वाण दिवस को उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। म.म. स्वामी आनन्द चैतन्य महाराज ने भी ब्रह्मलीन स्वामी चेतनानंद गिरि महाराज को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उन्हें महान संत बताया। स्वामी रामानंद गिरि, स्वामी कृष्णानंद गिरि, म.म. स्वमी श्यामसुन्दरदास शास्त्राी, स्वामी कमलानंद, स्वामी ब्रह्मानंद, स्वामी गविन्द्रानंद स्वामी ब्रह्मानंद तीर्थ, स्वामी गणेशानंद आदि ने भी अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। इससे पूर्व अखण्ड रामायण के पाठ का भोग लगाया गया। गुरु पूजन व हवन आदि में स्वामी चेतनानंद गिरि महाराज के सैंकड़ों भक्तों ने उपस्थित होकर गुरु सत्ता को प्रणाम किया।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *