साहसी निडर और प्रखर सुषमा ने चुनाव में सोनिया को भी चुनौती




नवीन चौहान
अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा में सुषमा स्वराज ने कभी पार्टी लीक से हटकर कोई काम नही किया। मुंह से कोई शब्द ऐसा नही बोला जिसे वापिस लेना पड़ा हो या माफी मांगनी पड़ी हो। साहसी निडर और प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज को भाजपा संगठन से जो जिम्मेदारी दी उसका उन्होंने बखूवी पालन किया। यहां तक कि साल 1999 में भाजपा ने सुषमा स्वराज को कर्नाटक की बेल्लारी सीट से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने भेजा तो वहां भी वह पूरी शिददत से चुनाव लड़ी। हालांकि इस चुनाव में उनको हार का मुंह देखना पड़ा। कर्नाटक में भाजपा कमजोर स्थिति में थी। लेकिन सुषमा स्वराज को हर मोर्चो पर डटकर मुकाबला करने की आदत सी थी।
भाजपा की ओजस्वी वक्ताओं में शुमार सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला छावनी में हुआ था। साल 1977 में महज 25 साल की आयु में सुषमा स्वराज हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गई थीं। यहां से उनके भाग्य का उदय हुआ तो राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने फिर पीछे पलटकर नही देखा। महिला होने के बावजूद राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने पुरूषों को चुनौती दी। भाजपा में एक अनुशासित सिपाही की तरह राम मंदिर मुददा हो या जम्मू कश्मीर का मुददा वह राष्ट्रहित की बात की करती थी। सुषमा स्वराज सदन के अंदर अपनी आवाज को बुलंद करती रही। यही कारण रहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेताओं के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती रही और भाजपा को शिखर पर पहुंचाने में बड़ा योगदान दिया। राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं के लिए सुषमा स्वराज खुद एक किताब है। सुषमा के साहस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह चुनाव की हार से भी नही घबराती थी। सुषमा स्वराज ने ने साल 1999 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया तो वहां भी उन्होंन अपनी छाप छोड़ी। दरअसल भाजपा संगठन ने यह कदम विदेशी बहू सोनिया गांधी के जवाब में भारतीय बेटी को उतारने की नीति का हिस्सा था। हालांकि सुषमा यह चुनाव हार गईं। लेकिन उनकी राजनैतिक समझ परिपक्व होती चली गई।नेतृत्व क्षमता के लिहाजा से सुषमा स्वराज को भाजपा में दूसरी पीढ़ी के सबसे दमदार राजनेताओं में गिना जाता रहा है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने विदिशा से जीत हासिल की। उनकी काबिलियत और पार्टी में उनके योगदान को देखते हुए मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री बनाया। इंदिरा गांधी के बाद सुषमा स्वराज दूसरी ऐसी महिला थीं, जिन्होंने विदेश मंत्री का पद संभाला था। आज पूरा देश सुषमा स्वराज के निधन से शोकाकुल है तो देश के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर अपनी संवेदनाएं प्रकट की है। पीएम मोदी ने कहा कि , “सुषमा जी का निधन मेरे लिए निजी क्षति है। वे उन महान कार्यों के लिए बड़ी आत्मीयता से याद की जाएंगी,जो उन्होंने देश के लिए किया।” मोदी ने स्वराज को असाधारण वक्ता और उत्कृष्ट सांसद बताया तथा कहा कि सभी राजनीतिक दलों के लोग उनकी प्रशंसा करते थे और उनका सम्मान करते थे। मोदी ने कहा,”जब बात विचारधारा की आती थी अथवा भाजपा के हितों की आती थी तो वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करती थीं, जिसे आगे ले जाने में उनका बहुत योगदान था।”



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