हरिद्वार में रिक्शा और घोड़े पर बैठकर होता था चुनाव प्रचार




-राजनीति वही लेकिन राजनेताओं के आचरण में आई गिरावट
नवीन चौहान
चुनाव प्रचार करने का सिलसिला वक्त के साथ बदलता चला गया। एक दौर वो था जब रिक्शा और घोड़े पर बैठकर प्रत्याशी वोट मांगने निकला करते है। चौपाल और चौराहों के साथ चाय की दुकान चुनावी चर्चा का मुख्य केंद्र हुआ करती थी। लेकिन वर्तमान में लक्जरी ऑलीशान कार में बैठकर प्रत्याशी चुनाव क्षेत्र में पहुंचते है। जनसभाओं को संबोधित करते है। उस दौर में प्रत्याशी की बातों पर जनता यकीन करती थी। लेकिन आज के दौर में जनता प्रत्याशी की बातों पर चटकारे लेती है। कनखल में फत्तू हलवाई की दुकान, जहां दूध जलेबी के साथ रबड़ी का आनन्द लिया जाता था और चुनावी चकल्लस जमकर होती थी। शहर के सभी बड़े लोगों का यहीं मजमा लगा करता था। छतरी वाला कुआं, चौक बाजार स्थित रोशन लाल की चाय की दुकान तथा चारजों की चौपाल और कनखल की घास मंडी में भी चुनावी चर्चा होती थी। जबकि कांग्रेस की रणनीति का अड्डा देशरक्षक औषधालय, हीरावल्लभ त्रिपाठी का घर तथा जगदीश चौधरी की दुकान हुआ करते थे। जबकि भाजपा के नेता अशोक त्रिपाठी के आवास, मोहन लाल दिल्ली वालों की दुकान तथा हरिद्वार में राममूर्ति वीर व रामलीला भवन मुख्य चर्चा के केन्द्र हुआ करते थे। कांग्रेस के नेताओं में पारस कुमार जैन तथा जगदीश चौधरी कांग्रेस की राजनीति के मुख्य स्तंभ होते थे तो वहीं अशोक त्रिपाठी और राममूर्ति वीर भाजपा के ऐसे नेता थे जिन्होंने भाजपा के बुरे दौर में भी भाजपा का झंडा हमेशा बुंलद रखा। समय के साथ-साथ राजनीति बदली और राजनीति करने वाले भी बदले, राजनीति तो वहीं रही किन्तु राजनीति में आचरण में गिरावट आती चली गई। राजनीति के उस दौर में नेता पार्टी और जनता के प्रति समर्पित रहते थे, किन्तु आज हालत यह है कि निजी स्वार्थों को प्राथमिता दी जाने लगी और पार्टी तथा जनता दूसरे नम्बर पर आ गई। इसकी बानगी टिकट न मिलने पर दल बदल के रूप में हरिद्वार में कई बार देखने को मिली। इसी के चलते किसी जमाने में जिस परिवार की राजनीति में तूती बोलती थी आज वह जनता और पार्टी में हासिए पर पहुंच गए हैं। इसका एक कारण और भी रहा की अपनी पसंद का प्रत्याशी मैदान में न आने पर भीतरघात करना रहा। बहरहाल हरिद्वार ने देश की आजादी से पूर्व और बाद में राजनीति के कई रंग देखे हैं। राजनीति तो आज भी वहीं है किन्तु नेताओं के आचरण, पार्टी के प्रति निष्ठा व समर्पण के साथ जनता के हितों को दरकिनार करने और निजी स्वार्थों को प्राथमिकता दी जाने लगी है।



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