बदहाल सरकारी स्कूल कैसे करे प्राइवेट स्कूलों से कम्पीटिशन, समय से सूचना भी नहीं पहुंचती स्कूलों तक




हरिद्वार। प्रदेश के सरकारी स्कूल खुद अपनी ही बदहाली पर आंसू बहा रहे है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को छुट्टी की सूचना तक देने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। बच्चों को मैसेज भेजने के लिये स्कूलों के पास कोई बजट नहीं है। इसी के चलते प्रशासन की ओर से की जाने वाली आकस्मिक छुट्टी के दिन भी सरकारी स्कूलों के बच्चे स्कूलों की दौड़ लगा रहे है। मंत्री जी पहले अपना घर तो संभालों तभी तो आप दूसरे के घरों पर अंगुली उठा सकते हो। जब हरिद्वार के स्कूलों का ये हाल है तो पहाड़ के स्कूलों की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते है।
प्रदेश के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जिस तेजी के साथ दावे करते है उससे तो प्रदेश के स्कूलों की स्थित देश में नंबर एक पर होनी चाहिये। मास्टर जी को डेकृस में होना चाहिये। तो मास्टर जी का घर स्कूल से आठ किलोमीटर की दूरी पर होना चाहिये। इसी के साथ कई अन्य घोषणायें भी शिक्षा को बेहतर करने की दिशा में किये गये है। लेकिन अगर धरातल पर इस घोषणाओं की हकीकत की पड़ताल की जाये तो ये महज स्टंट है। सरकारी स्कूलों की हालत बहुत लचर है। मंत्री जी के स्कूलों की खराब हालत का खुलासा शुक्रवार को हो गया। जब प्रशासन की ओर देर रात निजी और सरकारी स्कूलों की भारी बारिश की आशंका के चलते छुट्टी करने के आदेश जारी कर दिये। लेकिन हरिद्वार के कई स्कूल छुटटी के दिन भी खुले रहे। जब स्कूल प्रशासन से बात की तो उन्होंने बताया कि मैसेज भेजने की व्यवस्था पूरी तरह से नहीं चल रही है। जिसके चलते बच्चों को सूचना नहीं जा सकी। बच्चों को स्कूल पहुंचने पर ही छुट्टी होने का पता चला। अब सरकारी स्कूलों की ये हालत है। वही दूसरी ओर जिले के तमाम निजी स्कूलों ने मैसेज भेजकर बच्चों को छुट्टी की सूचना दे दी। मंत्री महोदय निजी स्कूलों पर अंगुली उठाने से पहले आपको सरकारी स्कूलों की स्थित में सुधार करना जरुरी है। तभी आपकी घोषणाये धरातल पर उतरती दिखाई देगी। अन्यथा ये महज स्टंट ही मानी जायेगी।
भा भा भे भि भी



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