पीएम मोदी की सबसे बड़ी भूल, अब सुधारने की दिशा में कदम




नवीन चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने का संकल्प लेकर राजनीति कर रहे हो। कर चोरी पर लगाम लगाने के नए-नए फार्मूले निकाल रहे हो। लेकिन साढ़े चार सालों में पीएम मोदी की समझ में ये बात तो अच्छी तरह आ गई है कि भारत में कर चोरी रोकना आसान नहीं है। यदि कर चोरों पर ज्यादा शिकंजा कसा तो उन्हें सत्ता खोनी पड़ सकती है। वोट बैंक की राजनीति के चलते वह व्यापारी वर्ग से पंगा मोल लेना नहीं चाहते है। इसी के चलते उन्होंने जीएसटी में बड़ी राहत देने का फैसला किया है। लोकसभा चुनावों की घोषणा होने से पूर्व वह व्यापारी वर्ग का विश्वास हासिल करने के लिए कई और घोषणाएं कर सकते हैं।
भारत एक विशाल विकासशील देश है। इस देश में 65 सालों तक कांग्रेस ने शासन किया। कांग्रेस की नीतियां कभी भी किसी भी नागरिक के लिए कष्टकारक नहीं रही। व्यापारी वर्ग को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। सरकारी अधिकारियों से सांठगांठ कर व्यापारियों ने खूब तरक्की की। भारत में भ्रष्टाचार का बोलवाला रहा। सरकारी ऑफिसों के चपरासी से लेकर बाबू ने खूब माल कमाया। व्यापारी वर्ग ने इन बाबूओं की खूब जेब गरम की। लेकिन साल 2014 में देश की कमान एक जमीन से जुड़े चाय बेचने वाले व्यक्ति नरेंद्र मोदी के पास आ गई। पीएम नरेंद्र मोदी ने ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा का संकल्प लेकर अपने इरादे जाहिर किए। उन्होंने इस संकल्प को पूरा करने के लिए पुरजोर कोशिश की और नीतियां बनाई। भारत में कारोबार पारदर्शिता से चले इसके लिए नीतियों को अमलीजामा पहनाया गया। कालेधन को बाजार से हटाने के लिए नोटबंदी की और व्यापार को आसान तरीके से चलाने के लिए जीएसटी लागू की। लेकिन भारत की महान जनता ने नोटबंदी का तोड़ निकाल लिया। अपने पैंसों की खूब अदला बदली की। अब बारी आई जीएसटी की तो नंबर दो के कारोबारियों को करारा झटका लगना शुरू हो गया। देश में मोदी सरकार की मुखालफत शुरू हो गई। हालांकि जीएसटी लागू करने के चंद घंटे बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने देश के चार्टर एकाउंटेंट के साथ मीटिंग कर सहयोग करने की अपील भी की थी। लेकिन पीएम मोदी की इस अपील का कोई खास फर्क देखने को नही मिला। लोगों में जीएसटी का खौफ पैदा कर दिया गया। नतीजा ये रहा कि देश का व्यापारी वर्ग मोदी से छिटकने लगा। मोदी की ये बात समझ में आती तब तक तीन राज्यों में भाजपा की सरकार खिसक गई। ऐसे में अब एक बार फिर मोदी को लोकसभा चुनाव में जनता के बीच जाना है। जनता के वोट चाहिए। जनता को नाराज करके और ईमानदारी का राग अलापने से तो वोट मिलने वाले है नहीं। सो मोदी ने भी व्यापारी वर्ग को खुश करने की ठान ली। वित्त मंत्री अरूण जेतली ने आगामी वित्त वर्ष से जीएसटी की करों में बदलाव कर दिया। जिसके बाद देश की जनता काफी खुश है। हालांकि कि मोदी की इस जीएसटी नीति को जनता लोक चुनाव से पूर्व की वोट को आकर्षित करने वाली घोषणा मान रहे हैं। अब देखना होगा कि दो माह के भीतर मोदी किस तरह जनता का विश्वास जीतने में सफल होते है। जिन सरकारी अधिकारियों के खून में भ्रष्टाचार दौड़ रहा है वह मोदी को आगे मौका देना चाहेंगे या नहीं।
अपना फायदा पहले देश बाद में
देश में कर चोरी के कितने तरीके है इसका एक छोटा सा उदाहरण एक संस्था ने पेश किया। एक संस्था के खाते में प्रतिवर्ष व्याज की रकम आती थी। संस्था के लीगल एडवाइजर ने सलाह दी कि इस व्याज की रकम को निकालकर अपने कार्यो में खर्च में शामिल करोंगे तो टैक्स देना नहीं पड़ेगा। बस फिर क्या था लीगल एडवाइजर की ये बात संस्था के सदस्यों के बीच रखी गई। सभी सदस्यों ने लीगल एडवाइजर की बात पर मोहर लगाते हुए व्याज की राशि को खर्च में शामिल करने की सहमति दे दी। ये हाल तो उस संस्था का है जहां सब शिक्षित लोग है। लेकिन देश के खजाने में जाने वाले टैक्स को बचाने के लिए किस तरह सब एकजुट है। लीगल एडवाइजर उनके मार्गदर्शक बने हुए है। इस घटना को देखने के बाद महसूस हुआ कि वास्तव में जीएसटी लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार्टड एकाउंटेंट की मीटिंग क्यो ली थी। सवाल बड़ा और गंभीर है कि आखिरकार हम अपने देश में कर चोरी करने में एकजुट क्यो हैं। क्या ये कर राष्ट्रहित के काम नहीं आता है। इस कर का उपयोग भारत की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ नहीं बनाता है। जब हमारे कर से ही देश की अर्थव्यवस्था चलती है तो हम कर चोरी के नये फार्मूले क्यो खोजते है। हमारे लिए अपना फायदा सबसे पहले और देश हित बाद में आता है।

 



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *