नवीन चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट समग्र शिक्षा अभियान ने दम तोड़ दिया। करोड़ों के बजट की इस महत्वकांक्षी योजना का लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। बस खाना पूर्ति के लिए ही सरकारी अधिकारी अपने भाषणों से बच्चों को बोर कर रहे है। इस मुहिम को सफल बनाने की इच्छाशक्ति भी प्रोजेक्ट में जुटे अधिकारियों में दिखाई नही दे रही है। जिसके लिए धरातल पर भी कोई काम होता दिखाई नही पड़ रहा है। इस अभियान को पूरा करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को पूर्वजों की वीरगाथाएं सुना रहे है। दयानंद और श्रद्धानंद के किस्से सुना रहे है। आज की वर्तमान पीढ़ी के बच्चे जो इंटरनेट के युग में खुद अपडेट है। वह लंबे चौड़े भाषणों को सुनने में यकीन नही रखती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो अधिकारी मोदी के इस प्रोजेक्ट को समझ नही पाए। या अधिकारी महज अपनी डयूटी पूरी करने तक सिमट कर रह गए है।
अब हम समग्र शिक्षा अभियान के बारे में खुलकर बताते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा निर्देशन में 24 मई 2018 को तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘समग्र शिक्षा योजना’ की शुरूआत की थी। इसके माध्यम से शिक्षा का स्तर सुधारने तथा तकनीकी इस्तेमाल बढ़ाकर विद्यार्थी और शिक्षकों को अधिक सशक्त बनाने की कवायद की जानी थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना था तथा बच्चों को समग्र रूप से विकास की ओर अग्रसर करना है। लेकिन वर्तमान हालातों पर नजर डाले तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नजर नही आ रही है। शिक्षा के स्तर में कोई बदलाव होता दिखाई नही दिया। सरकारी स्कूलों की हालत जस की तस है। जबकि निजी स्कूलों पर नकेस कसी जा रही है। निजी स्कूलों का सरकार ने दम निकालकर रख दिया है। जबकि खुद शिक्षा विभाग के कार्यालय में बैठे अधिकारी कुर्सी तोड़ रहे है। ऐसे में मोदी की मुहिम कैसे पूरी होगी ये किसी को पता नही। लेकिन सरकारी बजट को ठिकाने लगाने का तरीका अधिकारियों को खूब आता है। ऐसे में उददेश्यों से भटकी इस योजना का हर्श भी जल्द सबके सामने होगा। युवा बेरोजगार होंगे और सरकार बेबस होगी।
समग्र शिक्षा अभियान का लक्ष्य
• स्कूलों में पांचवी तक के बच्चों के लिए खेल सामग्री के लिए हर साल 5,000 रुपये, दसवीं तक के स्कूल में 10,000 तथा 12वीं तक के स्कूलों में 15,000 रुपये दिए जाएंगे, सभी स्कूलों में एक घंटा फिजिकल एक्टिविटी के लिए देना अनिवार्य होगा.स्कूलों में लाइब्रेरी होना बेहद जरूरी है, इसके लिए केंद्र सरकार स्कूलों को किताबों के लिए हर वर्ष 5,000 से लेकर 20,000 तक की सहायता राशि मुहैया कराएगा.दूर-दराज और गांव में रहने वाली लड़कियों को शिक्षा देने के लिए आरंभ की गई कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना पहले छठी से नौवीं तक ही सीमित थी. इसे अब छठी से बारहवीं तक बढ़ाया गया है.विकलांग विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए 200 रुपये प्रतिमाह दिया जायेगा.कौशल भारत में विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 9वीं से 12वीं के विद्यार्थियों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी.