कांवड़ मेले से व्यापारी हुआ उदास तो कौन हुआ मालामाल




नवीन चौहान
कांवड़ मेले के बाद हरिद्वार के व्यापारियों के चेहरे लटक गए है। स्थायी व्यापारियों को मायूसी हाथ लगी है। हालांकि होटल, धर्मशाला संचालकों ने मनमर्जी का किराया वसूला। वही अस्थायी तौर छोटे दुकानदारों के चेहरे खिल उठे है। डाक कांवडि़यों की भीड़ के चलते पैट्रोल पंप संचालको को दिन में ही पैट्रोल खत्म होने का बोर्ड लगाया पड़ा। कुल मिलाकर कहा जाए जो कांवड़ मेला हरिद्वार के स्थायी व्यापारियों को उदास कर गया तो छोटे दुकानदारों को मालामाल कर गया।
17 जुलाई से शुरू हुआ कांवड़ मेला धीमी गति से अपनी रफ्तार पकड़ने लगा। कांवडि़यों का आगमन शुरू हुआ तो होटल, धर्मशालाओं के कमरे फुल रहने लगे। वही अस्थायी कच्छे बनियान और प्रसाद की दुकानों पर भीड़ जुटने लगी। कांवडि़यों की बढ़ती भीड़ के साथ ही बैरागी कैंप में लगाई गई अस्थायी दुकानों पर भी रौनक लौट गई। खाने पीने की चीज वक्त के साथ-साथ मंहगी होने लगी। कुछ दुकानों ने वक्त के अनुसार मनमर्जी का पैसा वसूला। कमाई का आलम ये रहा कि दूध 70 से 80 रूपये किलो तक मिला और फल, सब्जियां मंहगी हो गई। मेले में अस्थायी दुकान लगाने वाले लोगों से कांवडि़यों से खूब कमाई की। जिला पुलिस प्रशासन की माने तो कांवड़ मेले में करीब पांच करोड़ कांवडि़यों की भीड़ हरिद्वार पहुंची। अगर औसतन एक कांवडिये का हरिद्वार में खर्च 500 रूपया माना जाए तो करीब 25 सौ करोड़ का कारोबार हुआ। जिसमें सबसे ज्यादा कमाई हरिद्वार के पार्किंग संचालकों की रही। जिन्होंने वाहनों को पार्किंग करने के लिए स्थान दिया। ऐसे में सभी दुकानदारों को आमदनी हुई है। लेकिन सबसे ज्यादा निराशा हरिद्वार के स्थायी दुकानदारों को रही। वही रानीपुर, ज्वालापुर के व्यपारियों को भी काफी नुकसान हुआ। स्थानीय निवासी घरों में कैद रहे तो ज्वालापुर के दुकानदारों की बौनी बटटे तक नही हुए। उत्तरी हरिद्वार और बैरागी कैंप काफी गुलजार रहा। यहां के दुकानदारों की मौज रही। कांवड़ मेला पूर्व की तरह अपनी रौनक खोता जा रहा है। हरिद्वार के व्यापारी नेता कैलाश केशवानी ने बताया कि कांवडिये अब पूरी तैयारी से आते है। औसतन एक कांवडियां 500 रूपया हरिद्वार में खर्च करता है। कांवडि़यों से हरिद्वार के दुकानदारों को कोई अतिरिक्त लाभ होता दिखाई नही पड़ता है।



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