हरिद्वार के होटल और ढाबों में बाल श्रमिक, ना श्रम विभाग को फुर्सत, ना पुलिस पर टाइम




नवीन चौहान
हरिद्वार के होटलों व ढाबों पर बड़ी तादात में बाल श्रमिक कार्य कर रहे है। कुछ बच्चे घर से नाराज होकर आए तथा कुछ पारिवारिक मजबूरियों के चलते बाल श्रम करने को विवश है। इन बाल श्रमिकों के उन्नमूलन की बात कोई नही करता है। आज चूंकि 12 जून को विश्व बाल श्रम दिवस है तो इस पर बात करना लाजिमी है। भारत में गरीबी, भूखमरी व पारिवारिक आर्थिक हालात बाल श्रमिक बनने को विवश करते है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से मजदूरी करवाई जाती है जबकि सबसे ज्यादा बाल श्रम भारत में होता है। ऐसे में टूरिस्ट नगरी और मां गंगा की गोंद में भी बाल श्रम होता है। जनपद हरिद्वार के श्रम विभाग और पुलिस प्रशासन को जिम्मेदारी और पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ बाल श्रम को रोकने के लिए कार्य करना होगा। तभी बाल श्रमिकों की संख्या में कमी आयेगी।
12 जून विश्व बाल श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस पर रूद्रप्रयाग पुलिस की टीम तथा श्रम प्रवर्तन अधिकारी जयपाल सिंह बाल श्रम ​की चेकिंग करने निकले। इस टीम ने रुद्रप्रयाग स्थित सभी होटल/ढाबों में निरीक्षण करना शुरू कर दिया। चेकिंग के दौरान शिवम होटल/ढाबा में सफलता मिली। वहां एक 12 वर्षीय बालक से होटल में काम करवाया जा रहा था। यह देख मौके पर होटल मालिक भगवती प्रसाद भट्ट के विरुद्ध धारा 3 बाल श्रम प्रतिषेध अधिनियम और विनियम अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया। वही रुद्रप्रयाग पुलिस द्वारा इस प्रकार के अमानवीय कृत्यों की निंदा की गई। रूद्रप्रयाग पुलिस श्रम विभाग के साथ जानकर अपने कर्तव्यपरायणता का फर्ज अदा कर दिया। बाकी जनपदों की पुलिस और श्रम विभाग की नींद कब टूटेंगी। हरिद्वार जैसे संवेदनशील जनपदों में तो बाल श्रम ​के तमाम मामले देखने को मिल जायेंगे। सिडकुल के ढाबो और होटलों की चेकिंग की जाए तो वहां मासूम काम करते दिखेंगे। लेकिन श्रम विभाग लापरवाह बना हुआ है। पुलिस के पास अन्य कायों की जिम्मेदारी है। ऐसे में बाल श्रम दिवस के औचित्य पर सवाल उठना लाजिमी है।



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