फ्रेगमेंट का जिन्न बोतल से बाहर निकला तो बेहद खतरनाक




-सरकार के शासनादेश से जनता को पड़ रही दोहरी मार
-अधिकारी अपने मुताबिक तय कर रहे विधिमान्यकरण शुल्क
नवीन चौहान
फ्रेगमेंट कानून का जिन्न हरिद्वार की जनता पीछा नही छोड़ रहा है। इस फ्रेगमेंट से मुक्ति पाने की आस लगाए बैठे सैंकड़ों पीडि़त परिवारों को राहत नही मिल पा रही है। पीडि़तों की स्थिति आसमान से टपके और खजूर पर अटके वाली हो गई है। वही त्रिवेंद्र सरकार की जनता को राहत प्रदान करने की मुहिम भी शासनादेश की अस्पष्टता के चलते अधर में अटकी दिखाई पड़ रही हैं। जहां जनता को राहत नही मिल पा रही है वही प्रशासनिक अधिकारी भी उलझन में है। अधिकारी पीडि़त परिवारों को राहत प्रदान करने की कोशिश में लगे है, लेकिन शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख नही होने के चलते विधिमान्यकरण शुल्क पर भ्रमजाल का संकट बना है। हरिद्वार के एक अधिकारी ने भूमि पर राजस्व लगाया है तो दूसरे ने भूमि और उस पर निर्मित भवन की गणना अलग-अलग करा दी है। जिसके चलते पीडि़तों को लाखों का अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ रहा हैं।
हरिद्वार की कई कॉलोनियां की भूमि फ्रेगमेंट कानून के चलते दाखिल खारिज होने से अटकी हुई थी। जनता की ओर से इस कानून को समाप्त करते हुए उनकी भूमि का दाखिला खारिज होने की मांग की जा रही थी। रानीपुर विधायक आदेश चौहान ने इस प्रकरण को सड़क से लेकर सदन तक उठाया। प्रशासनिक अधिकारियों के संज्ञान में लाकर जनहित में कदम उठाने की बात की। जिसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनता की समस्याओं का संज्ञान लिया और केबिनेट में प्रस्ताव लाकर फ्रेगमेंट कानून में फंसे सैंकड़ों परिवारों को राहत दी। 3 अक्टूबर 2018 को अपर सचिव बीएम मिश्र की आज्ञा से प्रभारी सचिव विनोद प्रसाद रतूड़ी ने शासनादेश जारी किया। इस शासनादेश में स्पष्ट किया कि राज्यपाल उत्तराखंड उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001 की धारा 168 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भूमि के ऐसे टुकड़े के संक्रमण के, जो शून्य हो गया था तथा जिसकी राज्य सरकार के पक्ष में राजस्व अभिलेखों में प्रविष्ट नही की गई थी। विधिमान्यकरण के लिए शुल्क को भूमि के वर्तमान सक्रिल रेट का 10 फीसदी निर्धारित किए जाने की स्वीकृति प्रदान करते है। विविधमान्यकरण के लिए 25 अप्रैल 2019 तक परगना के प्रभारी कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। भूमि का मूल्य वही होगा जो कलेक्टर द्वारा स्टाम्प शुल्क के लिए अवधारित किया गया होगा। इस स्पष्ट शासनादेश के बाद हरिद्वार और भगवानपुर के एसडीएम उलझन में आ गए। फ्रेगमेंट की उक्त भूमि के वर्तमान सक्रिल रेट के हिसाब से गणना के बाद भूमि पर निर्मित भवन की भी गणना कराई जा रही है। जिसके चलते पीडि़तों को आर्थिक और मानसिक तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। शासनादेश में साफ तौर पर लिखा होने के बावजूद अधिकारी इस मामले में कुछ भी साफ तौर पर बोलने से बच रहे है। आखिरकार एक जमीन के टुकड़े पर दो बार राजस्व की वसूली किस नियम के तहत की जा रही है इसकी जानकारी किसी के पास नही है। जबकि भगवानपुर में करीब 45 प्लाटों को विधिमान्य जमीन की दरों पर किया गया है। वही हरिद्वार की बात करें तो यहां एसडीएम कुश्म चौहान ने करीब 26 प्लाट की फाइलों को इस आधार पर उप निबंधक के वापिस भेज दिया गया कि विधिमान्यकरण के लिए जमीन और उस पर निर्मिम भवन की गणना भी की जाए। बताते चले कि पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने साल 2007 में भी फ्रेगमेंट कानून में जनता को राहत प्रदान कर 5फीसदी की दर से भूखंड पर राजस्व वसूल कर विधिमान्य किया था। लेकिन जानकारी के अभाव में जनता सरकार की इस सुविधा का लाभ उठाने से वंचित रह गई। लेकिन वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरे प्रदेश में इस योजना का लाभ देने के लिए व्यापक प्रचार प्रसार किया। जिससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति हो सकें और जनता को लाभ मिल पाए। हालांकि हरिद्वार उप जिलाधिकारी कुश्म चौहान ने फ्रेगमेंट कानून के पीडि़त परिवारों को राहत प्रदान करने के लिए हरसंभव सहयोग किया। लोकसभा चुनाव की अतिव्यस्तता के बावजूद जनता के प्रार्थना पत्रों का अवलोकन किया और उनके प्रार्थना पत्रों का निस्तारण कराया। लेकिन जमीन की सक्रिल रेट और उस भूमि पर बने भवन पर विधिमान्यकरण शुल्क लगाने चलते उनकी तमाम मेहनत पर पानी फिरता दिखाई दिया। इस पूरे प्रकरण में शासन स्तर पर जानकारी जुटाने के प्रयास किए जा रहे है। ताकि जनता को राहत मिल सकें और अधिकारियों को राजस्व के मामले में कोई परेशानी ना हो।
जिलाधिकारी दीपक रावत ने बताया कि फ्रेगमेंट कानून में शासनादेश के अनुसार ही राजस्व वसूल किया जायेगा। पूरे जिले में एक ही शासनादेश लागू होगा।
हरिद्वार एसडीएम कुश्म चौहान ने बताया कि फ्रेगमेंट कानून में शासनादेश का पालन कराया जा रहा है। भूमि और उस पर निर्मित मकान की गणना के बाद ही विधिमान्यकरण शुल्क वसूला जायेगा।
भगवानपुर एसडीएम संतोष पांडेय ने बताया कि इस नियम का कोई मामला मेरे संज्ञान में नही है। आज ऑफिस से बाहर हूं। ऑफिस जाकर ही देखकर बता सकता है।
सचिव सुशील कुमार ने बताया कि वह शासनादेश को स्पष्ट करेंगे। जिसकी जानकारी जिले को भेज दी जायेंगी। जनता की समस्या का निस्तारण करने के लिए ही विधिमान्यकरण शुल्क लेने का कार्य किया जा रहा है। जमीन के टुकड़े का वर्तमान सक्रिल रेट का 10 फीसदी की दरों से शुल्क लिया जाना है।



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