हिंसक गुलदार का हुआ अंत पर गुलदार के आदमखोर बनने के पीछे का पूरा सच, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान
भेल की जनता को सुरक्षित वातावरण देने के लिए एक हिंसक गुलदार को वन विभाग की टीम ने दो हंटर के सहयोग से मौत की गहरी नींद सुला दिया गया। गुलदार बेजुबान था। वह अपनी सच्चाई और अपने बचाव में कुछ कह नहीं पाया। लेकिन गुलदार को हिंसक बनाने के लिए इंसानों का कितना कसूर है, इसको जानना और समझना बेहद जरूरी है। क्योकि गुलदार के कारण जिस पहले व्यक्ति की मौत हुई वो 26 अक्टूबर 2019 को हुई और दूसरे व्यक्ति की मौत 4 जनवरी 2020 को हुई। भेल प्रबंधन की ताकत और राजनैतिक दबाब में ऐसा माहौल बनाया कि गुलदार आदमखोर हो गया है। गुलदार केवल आदमी का ही भूखा और आदमी को ही खा रहा है। विचारणीय बात ये है कि अगर वास्तव में गुलदार आदमखोर था तो इतने दिनों के अंतराल में वह भूखा कैसे रहा। उसने शहर के बीच में घुसकर किसी दूसरे आदमी को क्यो नही खाया। कहीं ऐसा तो नही ये आदमी ही गुलदार के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे थे। हम भले ही एक बेजुबान को आदमखोर बताकर उसकी मौत का जश्न मनाकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेक ले और इसको अपनी जीत बनाए। लेकिन इस गुलदार को हिंसक बनने के पीछे के सच को जानना बेहद जरूरी हो गया है और अपनी व्यवस्थाओं को दुरस्त करना भी जरूरी है। नहीं तो फिर इंसानों की गलती की सजा बेजुबान जानवर को मिलेगी और हंटर की मदद लेनी पड़ेगी।


हरिद्वार के भेल क्षेत्र में दो अलग—अलग महीनों में एक गुलदार के हमले में दो लोगों के मरने की सूचना फैली। गुलदार खबरों की सुर्खिया बना तो उसके आतंक के चर्चे होने लगे। गुलदार को आदमखोर बताया जाने लगा। क्षेत्र के राजनैतिक लोगों ने भी गुलदार के आतंक से निजात दिलाने की मुहिम शुरू कर दी। भेल प्रबंधन ने भी गुलदार से मुक्ति पाने की जुगत लगानी शुरू कर दी। गुलदार को आदमखोर घोषित करने में सभी को सफलता मिली और फिर उसको खत्म करने की पटकथा शुरू हुई। मुख्य वन जीव प्रतिपालक राजीव मरतरी के आदेश पर गुलदार को खतरनाक घोषित करते हुए शूट करने का आदेश हरिद्वार वनाधिकारी आकाश वर्मा को मिला। डीएफओ आकाश वर्मा ने दो हंटर डॉ प्रशांत सिंह और मिस्टर जहीर की मदद ली। 18 जनवरी 2020 को वन विभाग का मिशन आप्रेशन गुलदार शुरू हुआ और चंद घंटों बाद ही गुलदार को मार गिराया गया। गुलदार के मरने की खबर फिर सुर्खियां बनी। नेता लोग भी ऐसे खुश है मानों जनता के लिए संजीवनी बूटी लाकर दी हो। गुलदार का अंत हुआ। लेकिन अब सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रभागीय वनाधिकारी की ओर से भेल प्रबंधन को भेजी गई वो चार चिटिठयां का जिक्र करना जरूरी है। वन विभाग ने भेल प्रबंधन को सेक्टर चार पीठ बाजार की बची कुची खाद्य सामग्री को जंगल के समीप नही फेंकने के लिए आगाह किया। मीट के टुकड़ों को नही फेंकने की हिदायत दी गई। लेकिन भेल प्रबंधन ने वन विभाग की इन चिटिठयों की कोई सुध नही ली। नतीजा ये रहा कि जंगली जानवर इस बचे कुछ मीट के टुकड़ों को खाने के लिए सड़क किनारे आबादी वाले क्षेत्रों में आने लगे। इसी दौरान जंगल के समीप सड़क किनारे जो आदमी मिला उसी को गुलदार ने निबटा दिया। कुल मिलाकर कहा जाए तो गुलदार और आदमी के बीच की भिडंत महज एक हादसा था। लेकिन जिस तरह से उसे बताया और प्रस्तुतीकरण किया गया वो गुलदार को आदमखोर और खतरनाक बनाने के लिए काफी था। अगर वास्तव में गुलदार आदमखोर होता तो इस दौरान ना जाने कितने लोगों को अपना निवाला बना गया होता। हम यहां पर गुलदार का बचाव नही कर रहे है। लेकिन भेल प्रबंधन को वन विभाग की उन चिटिठयों की सुध लेकर व्यवस्था परिवर्तन में कार्य करने की अपील कर रहे है। ताकि फिर किसी जंगली जानवर की मीट के टुकड़ों के चक्कर में आदमी ने आमना—सामना ना हो। फिर कोई आदमखोर और खतरनाक ना कहलाए।



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