नवीन चौहान
खनन कारोबारी से लेकर प्रोपर्टी डीलर नंबर दो के लेनदेन का हिसाब रखने के लिए बाकायदा एक कच्चा रजिस्टर मैंटेन करते है। इस रजिस्टर में उन तमाम लेनदेन का हिसाब रखते है, जिसका फर्म के हिसाब से कोई मतलब नही होता है। सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, बाबूओं, चपरासी से लेकर पत्रकारों को दिए जाने वाले इस नजराने को याद रखने अथवा बिजनेस पार्टनर को दिखाने के लिए इस रजिस्टर का एक अलग नाम से अलग स्थान पर रखा जाता है। खनन कारोबारियों की भाषा में जाने तो वह इस रजिस्टर को कुत्तों की जलेबी के नाम से बुलाते है। अगर मालिक ने मुंशी को कुत्तों की जलेबी के लिए पुकारा तो वह समझ जाता है कि वही रजिस्टर लेकर आना है, जिसमें नंबर दो का बहीखाता है। पूर्व में भी पुलिस हिरासत में एक प्रोपर्टी डीलर ने ऐसे ही रजिस्टर में दर्ज कई खाकी से लेकर खादी और अधिकारियों से लेकर पत्रकारों के नामों का खुलासा किया था। जिसकी रिकार्डिंग पुलिस ने की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की मुहिम में जुटे है। नोटबंदी,जीएसटी लागू की गई। कालेधन को रोकने के तमाम हथकंडे अपनाए। लेकिन उनको बहुत अधिक सफलता हाथ नही लग पाई। उनकी सभी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने वाले लोगों ने ही गच्चा दे दिया। हालांकि नरेंद्र मोदी भारत के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी इस आज भी भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने में जुटे है। जिसके चलते कारोबारियों में दहशत का माहौल है। चलो ये तो बात प्रधानमंत्री की हुई। अब धरातल की बात करते है। किसी भी कारोबार को करने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों से संबंध बहुत अच्छे होना जरूरी है। अधिकारियों की छापेमारी की जानकारी लीक कराने के लिए चपरासी और अधिकारियों के चालक से संबंध मधुर होना बहुत जरूरी है। हम बात खनन के कारोबार की करते है। खनन के कारोबारियों की जड़े बहुत गहरी होती है। सत्ता पक्ष से लेकर विपक्षी पार्टियों के नेताओं से सेटिंग करके रखते है। वही अधिकारियों से लेकर चपरासी को अपनी मुट्ठी में रखते है। ताकि इन सभी की कृपा दृष्टि बनी रहे। नेता एनओसी दिलाए और अधिकारी छापेमारी से दूर रहे। खाकी के लोग दूरी बनाकर रखे और कलमकारों की आंखे बंद हो। इन सबको खुश करने के लिए एक कीमत चुकानी पड़ती है। जो कि नजराना कहे या रिश्वत या कुछ भी नाम दो। लेकिन इस हिसाब को रखने के लिए जो रजिस्टर रखा जाता है उसका नाम बहुत ही सम्मानजनक होता है। जी हां कुत्तो की जलेबी। यानि आप उसको पैंसा देकर ईमान भी खरीदोंगे और गलत कार्य की परमिशन भी। जब उसका नाम बहीखाते में दर्ज करोंगे तो वो रजिस्टर होगा कुत्तों की जलेबी। हो सकता है कुछ कारोबारियों ने कुत्तो के बिस्कुट रखा हो। ये हकीकत तो हरिद्वार की है। हरिद्वार में खनन कारोबारियों ने कई बार पैंसा देकर प्रदर्शन कराए। पैंसा देकर खबरे छपवाने का कार्य तक किया। खबरों से अधिकारियों और सरकार पर दबाब बनाकर खनन की परमिशन कराई। जिसके बाद अवैध खनन के खेल को अंजाम दिया। अवैध खनन को करने के लिए खाकी से लेकर खादी तक की जेब गरम की और कलमकारों के हाथ बांध दिए। उसके बाद अपने मंसूबों को पूरा किया। हालांकि जिन अधिकारियों और पत्रकारों ने अपनी आत्मा बेचकर ईमान का सौंदा किया। उन्ही का नाम कुत्तों की जलेबी के रजिस्टर में दर्ज है। लेकिन जलेबी का चस्का ऐसा लगा कि इसके चक्कर में कई बार पिटाई तक खानी पड़ी। हरिद्वार तहसील के कई कर्मचारी तक पिटाई का स्वाद भी चख चुके है। ऐसा ही कुछ हाल शिक्षा जगत का भी है। जहां निजी कॉलेज संचालकों ने सरकार की आंखों में धूल झोंककर, विश्वविद्यालय से सेटिंग करके और समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को जलेबी खिलाकर गरीबों को मिलने वाला हक ही डकार लिया। ताजा प्रकरण छात्रवृत्ति घोटाले का चल रहा है। जहां करीब छह सौं करोड़ के घोटाले की जांच एसआईटी कर रही है। एक ईमानदार आईपीएस मंजूनाथ टीसी की पूछताछ में कई कॉलेज मालिक जेल जा चुके है। हालांकि इस काली कमाई का बहुत सारा हिस्सा तो कुत्तों को जलेबी खिलाने में ही चला गया। ये तो बनगी भर है। इस रजिस्टर में ऐसी बहुत की परते है। जो खुलनी बाकी है।