बिजली विभाग की मिलीभगत से दो दशक से हो रही बिजली चोरी




नवीन चौहान
बिजली विभाग की मिलीभगत से बिजली चोरी होने का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है। सरकारी वेतन पाने वाले बिजली विभाग के आंखों में शर्म का पानी सूख चुका है। हालात ये हो गए है कि अधिकारी और कर्मचारी ही बिजली चोरी कराने लगे है। एक इलाके में तो करीब दो दशक से बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी का उपकरण भी खुद विभाग के कर्मचारी ही लगाकर गए। ऐसे में इस लाइन लॉस को पूरा करने के लिए जिम्मेदार उपभोक्ताओं के बिलों में बढोत्तरी कर वसूला जाता है।
उत्तराखंड का एक जनपद हरिद्वार ऐसा है ​जिसके हर विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों को मलाईखाने को मिलती है। ऐसे में बिजली विभाग भी अछूता कैसे रहे। सिडकुल की स्थापना के साथ ही बिजली विभाग में भ्रष्टाचार के जो बीच बोए गए और वृक्ष बन चुके है। जिनकी शाखाएं तमाम स्थानों पर फेल चुकी है। सीधी सपाट बात की जाए तो हरिद्वार में बड़े स्तर पर बिजली चोरी हो रही है। इस बिजली चोरी में विभाग के ही कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत है। रात्रि होते ही बिजली के खंबों पर कटिया पड़ जाता है। जो सुबह सबेरे नौ बजे हटा लिया जाता है। क्षेत्रों में कटिया डालने की जानकारी लाइनमैन को होती है। लेकिन वह इसकी जानकारी अधिकारियों को नही देते। या देते होंगे तो अधिकारियों को उसके हिस्से का माल मिल जाता होंगा। सिडकुल, जगजीतपुर, जमालपुर, मिस्सरपुर, पंजनहेड़ी, भोगपुर, सराय, औरंगाबाद, लक्सर और देहात के तमाम इलाकों में बड़े स्तर पर बिजली चोरी हो रही है। लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी चंद चुनिंदा लोगों पर कार्रवाई करके अपनी खानापूर्ति करते है। बिजली चोरी के खेल में अधिकारियों की मिलीभगत होने की बात तो खुद कई संविदाकर्मी करते रहे है। हरिद्वार डीएम दीपक रावत ने खुद कई मर्तबा बिजली चोरी को रंगेहाथों पकड़ा और अधिकारियों को फटकार तक लगाई। लेकिन इन अधिकारियों पर कोई फर्क पड़ने वाला नही है।



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