dps school, व्लू व्हेल और पबजी स्कूली बच्चों के लिए खतरनाक




नवीन चौहान
सोशल मीडिया का बढ़ता शिकंजा स्कूली बच्चों की मनोदशा को प्रभावित कर रहा है। वही व्लू व्हेल औी पबजी जैसे मोबाइल गेम बेहद ही खतरनाक साबित हो रहे है। विद्यार्थी और गुरू के बीच के तालमेल को गड़बड़ाने में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका है। स्कूली बच्चों की मनोदशा को समझने और उसको दुरस्त रखने के लिए शिक्षकों की अहम जिम्मेदारी है। उक्त तमाम मंथन और चिंतन दिल्ली पब्लिक स्कूल रानीपुर में सीबीएसई नई दिल्ली द्वारा ‘किशोरावस्था शिक्षण’ विषय पर आयोजित कार्यशाला के समापन सत्र के दौरान हुई। दो दिवसीय कार्यशाला में हरिद्वार जनपद के विभिन्न विद्यालयों से 30 शिक्षक शिक्षिकाओं ने प्रतिभाग किया।
मुख्यवक्ता एवं विषय विशेषज्ञा के रूप में डीपीएस आरकेपूरम, दिल्ली की उपप्रधानाचार्य पदमा श्रीनिवासन ने कार्यशाला के दूसरे दिन किशोरावस्था के स्कूली बच्चों से सम्बंधित विभिन्न विषयों आहार, व्यवहार, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, बौधिक, मानसिक विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गयी। उन्होंने किशोरावस्था के विद्यार्थियों में बढ़ते तनाव, सोशल मीड़िया का बढ़ता शिकंजा किस तरह इस आयु के बच्चों को भ्रमित और मनोविकृति की ओर ले जा सकता है इस बारे में बहुत ही गहनता से अवगत कराया। उन्होंने कक्षा में विद्यार्थियों के व्यवहार तथा शिक्षकों का व्यवहार कितना संयमित एवं मर्यादित होना चाहिए तथा प्रत्येक शिक्षक को किसी भी विद्यार्थी के साथ कितनी सीमा में संवाद करना चाहिए इसके बारे में जानकारी दी। उन्होंने ब्लू व्हेल, पबजी एवं अन्य गेम्स का भी उदाहरण देते हुए कहा कि इस प्रकार के मोबाईल गेम्स बच्चों की मनोदशा को विकृत कर सकते हैं विद्यार्थियों को इनसे दूर रखने की भी सलाह दी। पदमा श्रीनिवासन ने पोक्सो एक्ट तथा बाल अपराध से जुड़ी हुई विभिन्न धाराओं से भी अवगत कराया।
विभिन्न विद्यालयों से आए प्रतिभागी शिक्षकों ने मंचन के द्वारा विद्यालय में होने वाली किशोरवय छात्र छात्राओ, अभिभावकों, शिक्षकों से जुड़ी समस्याओं तथा अन्य विषयों को प्रदर्शित किया तथा उनके समाधानों पर चर्चा की।
डीपीएस रानीपुर के प्रधानाचार्य डॉ अनुपम जग्गा ने सीबीएसई दिल्ली एवं श्रीमती पदमा श्रीनिवासन को इस कार्यशाला के आयोजन के लिए धन्यवाद दिया एवं प्रतिभागी शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज तेजी से बदलती दुनिया जिसमें इंटरनेट, सोशलमीडिया, मोबाईल एवं अन्य हाईटेक उपकरण हम सभी को चारों ओर से घेरे हुए हैं तथा किशोरवय छात्र छात्राएं सबसे अधिक इसके सम्पर्क में हैं ऐसे में शिक्षकों की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण एवं सवेदनशील हो जाती हैं। किशोरवय विद्यार्थियों से संयमित एवं मर्यादित दायरे में रहते हुए उनके मनोवैज्ञनिक दृष्टिकोण को समझते हुए व्यवहार करें तथा किसी भी विद्यार्थी में आए किसी भी असमान्य व्यवहार को नज़अंदाज ना करें बल्कि अभिभावको एवं प्रधानाचार्य के साथ उसकी समीक्षा करें।कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *