नवीन चौहान
लाखों की नौकरी का पैकेज छोड़कर देशभक्ति का जज्बा दिल में लिए सेना की वर्दी पहनने वाला उत्तराखंड का चित्रेश बिष्ट युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं। देश की रक्षा के लिए शहीद होने वाला अमर जवान चित्रेश बिष्ट का नाम भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया है। आज की युवा पीढ़ी के लिए चित्रेश बिष्ट एक रोल मॉडल हैं। आज सभी भारतीयों को चित्रेश पर गर्व है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा, रानीखेत के पोस्ट देवली ग्राम पीपली निवासी सुरेंद्र सिंह बिष्ट के बेटे चित्रेश बिष्ट बचपन से ही पढ़ाई में होनहार था। मानों भगवान ने ईश्वरीय शक्ति प्रदान की थी। बचपन से अपनी कक्षा में अव्वल आने वाले चित्रेश ने खाकी वर्दी बचपन से ही घर में देखी। पिता सुरेंद्र बिष्ट यूपी पुलिस में भर्ती हुए। व्यवहार कुशल सुरेंद्र बिष्ट ने यूपी और उत्तराखंड राज्य में अपनी सेवाए दी। सुरेंद्र सिंह बिष्ट के संस्कारों का प्रभाव चित्रेश बिष्ट पर इतना गहरा हुआ कि उसने भी सेना की वर्दी पहनने की ठान ली। लगत इतनी कि तो ठान लिया उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा दी। साल 2005 में बीटेक में चयन हुआ लेकिन मन नहीं लगा। मन तो वर्दी पहनने का था। एक साल बीटेक करने के बाद चित्रेश ने बीटेक छोड़कर सेना की वर्दी पहन ली। पिता सुरेंद्र बिष्ट ने भी आशीर्वाद दिया और चित्रेश ने सेना का कठिन अभ्यास किया। खतरों से खेलने के शौकीन चित्रेश बिष्ट ने बम को निष्क्रिय करने को चुना। राजौरी में अपनी डयूटी करते हुए चित्रेश बिष्ट बम विस्फोट में शहीद हो गया। चित्रेश बिष्ट की हाल ही के दिनों में शादी होने वाली थी। मां पिता के सपनों अधूरे रह गए। लेकिन आज हर भारतीय को चित्रेश पर गर्व है। खड़खड़ी स्थित श्मशान घाट पर नौजवान चित्रेश को अंतिम विदाई देने के दौरान हर भारतीय की आंखे नम थी। बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाओं ने चित्रेश बिष्ट को सेल्यूट किया। शमशान घाट के आसपास के मकानों की छतों पर महिलाएं भी चित्रेश को सलामी देते हुए नजर आई। चित्रेश का नाम तो अमर हो गया। लेकिन एक नौजवान पीढ़ी को संदेश दे गया। देश सेवा से बढ़कर कोई धर्म नही होता है। चित्रेश एक सच्चा भारतीय है। जिसने मां की रक्षा के लिए भारत मां की गोद को ही चुना।