सीबीएसई के क्षेत्रीय अधिकारी रणबीर सिंह फंसे एक बच्चे के सवाल पर, आप भी सुने




नवीन चौहान
सीबीएसई की 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में बैठने से पूर्व बच्चों के मन में कई सवाल है जो उन्हें परेशान कर रहे है। बच्चों को कम अंक आने पर अपनी वैल्यू कम होने का डर भी सता रहा है। तो अधिक कोर्स होने की चिंता भी परेशान कर रही है। ऐसे की कई गंभीर सवाल बच्चों ने डीएवी सेंटेनरी स्कूल में सीबीएसई के क्षेत्रीय अधिकारी रणबीर सिंह के सामने रखे। ऐसे ही एक विद्यार्थी के सवाल पर रणबीर सिंह खुद फंस गए। वह बच्चे की बात को सुनकर हक्के—बक्के रह गए। हालांकि रणबीर सिंह ने बच्चों को मानसिक तनाव से दूर रहकर मन लगाकर पढ़ाई करने के बारे में बहुत प्यार से समझाया। बच्चों को उनके लक्ष्य के लिए प्रेरित किया। लेकिन बच्चों के मासूम सवालों ने कई बार क्षेत्रीय अधिकारी को भी उलझन में डाल दिया।


जी हां आज के दौर में बोर्ड परीक्षाओं को लेकर बच्चों में बहुत मानसिक तनाव रहता है। बच्चों के माता—पिता से स्कूल प्रबंधन का फोकस भी बेहतर रिजल्ट को लेकर रहता है। बेहतर रिजल्ट हो तो कोई बात नही आज को प्रतियोगिता 500 में से 499 प्रतिशत मार्क्स लाने को लेकर हो रही है। स्कूल प्रबंधन अपना रिजल्ट बेहतर चाहता है तो सीबीएसई के क्षेत्रीय अधिकारी भी अपने क्षेत्र को नंबर वन की पोजिशन पर देखना चाहते है। इस नंबर वन की पोजिशन को लेकर जो कंपटीशन चल रहा है उसके बीच में विद्यार्थी डर के साये में है। विद्यार्थियों के इसी डर को दूर करने के लिए सीबीएसई के क्षेत्रीय अधिकारी रणबीर सिंह हरिद्वार के डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल पहुंचे। लेकिन वहां तो एक विद्यार्थी ने ही उनको आइना दिखा दिया।

विद्यार्थी ने क्षेत्रीय अधिकारी रणबीर सिंह को कहा कि आज कल 500 में 499 नंबर के चक्कर में 95 प्रतिशत वाले विद्यार्थियों को नकार दिया जाता है। उनकी कोई वैल्यू नही है। विद्यार्थी की यह बात सुनने के बाद क्षेत्रीय अधिकारी रणबीर सिंह बिना कोई जबाव दिए दूसरे सवाल के लिए आगे निकल गए। हालांकि इस बच्चे के सवाल में बहुत गंभीरता दिखाई दी। नंबर वन की पोजिशन पाने के लिए विद्यार्थियों पर इस कदर दबाव दिया जा रहा है कि वह मानसिक तनाव के दौर में पहुंच जाते है। वर्तमान शिक्षा की स्थिति बहुत बदली हुई है। शिक्षा के अधिकार और मानको ने जहां गुरू और विद्यार्थी के बीच के सम्मान को कम किया है। वही कम अंक आने वाले विद्यार्थियों की कदर भी कम की है। इतिहास में ऐसे बहुत सारे उदाहरण है कि फेल आने वाले छात्रों ने भी इतिहास रचा है। फेल होने की परंपरा बदली तो नंबर वन की पोजिशन ने छात्रों को मानसिक कमजोर किया है। वैसे आधुनिक युग में जहां बच्चों के सर्वागीण विकास की कल्पना की जाती है। स्कूल की ओर से होमवर्क ईमेल के जरिए दिया जाता हो। वहां बच्चों से मोबाइल से दूर रहने और सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने की उम्मीद करना बेमानी है। गुरूकुलीय शिक्षा पद्धति से दूर निकलने के बाद वर्तमान शिक्षा पद्धति पर हमारे शिक्षा मंत्रालय को गहन अध्ययन की जरूरत है। अन्यथा मासूम बच्चों के सवाल किसी भी क्षेत्रीय अधिकारी को उलझन में डालते रहेंगे।



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