भारत माता के पुजारी स्वामी सत्यमित्रानंद के लिए देश सेवा सर्वोपरि




नवीन चौहान
अध्यात्म चेतना के धनी व संघ के प्रबल समर्थक पद्मभूषण व निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का जन्म 19 सितंबर, 1932 को आगरा में हुआ था। उनका परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के सीतापुर का रहने वाला था। संन्यास से पूर्व उनका नाम अंबिका प्रसाद पांडेय था। उनकी अध्यात्मिक शिक्षा ऋषिकेश में हुई। शिक्षक उनके पिता शिवशंकर पांडेय ने उन्हें बचपन से ही संस्कारित शिक्षा दी। उनके पिता भी राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त थे और शिक्षक थे। स्वामी सत्यमित्रानन्द की माता त्रिवेणी देवी के अध्यात्म चिंतन का भी इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। इसी कारण देश के चुनिंदा विद्वानों में अग्रिम पंक्ति में शुमार थे।
धर्म, संस्कृति, और विश्व कल्याण की सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मविभूषण से अलंकृत किया था। उनका प्रकृति, पर्यावरण से विशेष लगाव था। ईष्ट सेवा के साथ वे भारत माता को सर्वोच्च मानते थे और देश सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते थे। यही कारण था की वर्ष 1983 में उन्होंनेे हरिद्वार में 108 फुट ऊंचे भारत माता मंदिर का निर्माण किया। जिसमें भारत माता की प्रतिमा के साथ देश के तमाम देश भक्तों, संतों, क्रांतिकारियों की मूर्तियां स्थापित की। इस भव्य अलौकिक मंदिर का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। वे छूआछूत के भी प्रबल विरोधी रहे। अपने धार्मिक कार्यक्रमों में वे सदैव आदिवासी, वनवासी, दलित, अति दलितों का का सम्मान किया करते थे। यही कारण था कि संत समाज के अतिरिक्त प्रत्येक वर्ग वाहे वे सामाजिक हो या राजनैतिक सभी में उनको सम्मान दिया जाता था।



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