एएसपी का माफीनामा और पीड़िता के अनसुलझे सवाल




नवीन चौहान
एएसपी रैंक के अधिकारी पर यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाने वाली पीड़ित महिला कांस्टेबल एक माफीनामे पर ही मान गई ये बात किसी को हजम नहीं हो रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या पीड़िता पर किसी प्रकार का कोई दबाव था। जिस कारण से उसने इस प्रकरण से अपने कदम पीछे खींच लिए। एक लिखित माफीनामे पर ही संतुष्टि जाहिर कर दी। हालांकि इस प्रकरण में पुलिस महकमा विभागीय कार्रवाई की बात कर रहा है। लेकिन पीड़िता की एकाएक चुप्पी साध लेना कई सवालों को उलझा रहा है। एक पीड़िता जो शिकायत लेकर एसएसपी दफ्तर पहुंची उसने माफीनामे के द्वारा मिलने वाले न्याय की उम्मीद तो नहीं की होगी। हालांकि इस प्रकरण में तत्कालीन एसएसपी रिधिम अग्रवाल ने पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए एक बेहतर कप्तान का फर्ज जरूर अदा किया।
गत दिनों एक महिला कांस्टेबल का अपने ही विभाग के एएसपी परीक्षित कुमार पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने का प्रकरण सामने आया। इस मामले में पीड़िता ने हिम्मत दिखाते हुए तत्कालीन एसएसपी रिधिम अग्रवाल ने शिकायत भी दर्ज कराई। पीड़िता की शिकायत पर तत्कालीन एसएसपी ने त्वरित गति से कार्रवाई की। इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच के लिये यौन उत्पीड़न निवारण समिति के सुपुर्द किया और देहरादून पुलिस मुख्यालय के अफसरों को लिखित और मौखिक रूप से जानकारी दी गई। करीब सात दिनों तक ये प्रकरण उत्तराखंड पुलिस महकमे के उच्चाधिकारियों के संज्ञान में रहा। जबकि यौन उत्पीड़न निवारण समिति की उपाध्यक्ष ममता वोहरा अपनी टीम के साथ इस प्रकरण की गहनता और निष्पक्षता से जांच पूरी करती रही। उन्होंने इस प्रकरण की जांच रिपोर्ट बनाने में पूरी गोपनीयता बरती। इस बात की भनक मीडिया तक को लीक नहीं हुई। इसी दौरान एएसपी अपनी बेगुनाही साबित करने के लिये इधर उधर हाथ पैर मारते रहे। समिति की जांच रिपोर्ट अंतिम दौर में पहुंची तो आखिरकार एएसपी परीक्षित कुमार ने अपनी गलती मानते हुए लिखित माफीनामा दिया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उस पीड़िता का है कि वो किस मनोदशा से गुजरी होगी। जिसने एएसपी के खिलाफ शिकायत करने का हौसला तो दिखाया। लेकिन न्याय कहीं अधूरा रह गया।



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