आज हिन्दी दिवस की शुभ कामनाओं के साथ मैं इंदु शर्मा एक हिन्दी अध्यापिका होने के नाते आज की पीढ़ी से पूछना चाहती हूँ कि आखिर हिन्दी का प्रचार- प्रसार करने अर्थात् हिंदी को बोलने व समझने में शर्म किस बात की है? हम क्यों दूसरी भाषाओं को अपने जीवन में उतारना चाहते हैं और हिंदी से दूर भागते जा रहे हैं अन्य भाषाओं का ज्ञान होना भी बहुत गर्व की बात है। लेकिन मैं बताना चाहती हूँ कि हमारी हिंदी भाषा ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें भावनाओं को महसूस किया जा सकता है ,खुशियाँ बढ़ जाती हैं दुःख बाँट लिए जाते हैं, पराए अपने बन जाते हैं, हिंदी भाषा मधुर,सरल,सरस भाषा है। इसी कारण कोई भाषा हिंदी के स्थान पर नहीं आ सकती। बाकी की भाषाएं अपने आप में अपना महत्व रखती हैं। लेकिन हमारे लिए सर्वोपरि तो सिर्फ हिंदी ही है। आज के इस दौर में सभी के पास समय का अभाव है, ना कोई किसी के पास सुख-दुख की बात पूछने जाता है ना अपनी बताने जाता है। इस व्यस्तता भरी दुनिया में हम अपनी संस्कृति अपना बोलने का ढंग अपने संस्कार भूलते जा रहे हैं सच मानिए जो आशीर्वाद जो शुभकामनाएँ जो खुशियाँ जो प्रसन्नता हिंदी को बोलने और सुनने में हैं वह किसी और भाषा में नहीं है। मेरा अनुरोध है आप सभी से कि हिंदी को केवल हिंदी दिवस की शुभकामनाओं तक ही सीमित ना रखें अपितु इस मात्र भाषा को माँ का आशीष समझ कर उसको अपने जीवन में महसूस करें।
इन्दु शर्मा, पूर्व शिक्षिका डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल